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एक उपवास करके, छत्र वृक्षके नीचे, १००० पुरुषोंके साथ, दीक्षा ग्रहण करी ( उस वखत ) चोथो मनपर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम पारणो, सोमदेव ब्राह्मणके घरे, परमान्न क्षीर सेती भयो । छ माश छद्मस्थ पणे विहार करके, फेर कोशंबी नगरी में आए ( वहां ) चोथभक्त संयुक्त चैत्र शुद्ध १५ के दिन, लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान उत्पन्न भया । उस वखत चतुर्निकाय देव गणका किया हुवा, समवसरणमें बेठकें, १२ परषदा के सन्मुख, धर्मोपदेश देके, चतुर्विध संघकी स्थापना करी || भगवान् के सर्व ३ लाख ३० हजार (३३००००) साधु हुए || ( जिसमें ) एकसो दो (१०२) प्रद्योतन प्रमुख गणधर भए । सोलेहजार एकसो आठ ( १६१०८) वैक्रिय लब्धि धारक हुए ॥। १० हजार (१००००) अवधि ज्ञानी भए || १० हजार ३ सै (१०३००) मन पर्यव ज्ञानी भए । १२ हजार (१२०००) केवल ज्ञानी भए । २३०० चउदे पूर्वधारी हुए ।। ९६०० वादी विरुद धरनेवाले हुए ॥ ४ लाख २० हजार (४०२०००) रति प्रमुख साधवी हुई ॥ २ लाख ७६ हजार (२७६०००) श्रावक हुए ।। ५ लाख ५ हजार (५०५००० ) श्राविका हुई | ( इत्यादिक ) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेत शिखरजी पर्वतके ऊपर, ३०८ साधुवों केसाथ, १ माशका अणशण ग्रहण किया । काउसग्ग मुद्रायें, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्म कों खपायकें, मिति मिगसर वदि ११ के दिन, ३० लाख पूर्वका आउखा पूरण करके, सिद्धि स्थानको प्राप्ति भए । शासनदेव कुसुम यक्ष | शासन देवी शामा। राक्षसगण |
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