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Achar
वासुपूज्य कुमरनाम स्थापन किया ( नाम स्थापनका यह हेतु है) वासवनाम इंद्र, जब भगवान् माताके गर्भमे आये, तब इंद्रने भगवान्की माताकों वारंवार पूज्या । इस्से वासुपूज्यनाम (अथवा) वसुकहिये रत्नवासव कहिये वैश्रमण, जब भगवान गर्भमें आये । तब वैश्रमण देवनै राजाके घरमें वारंवार रत्नांकी वर्षा करी, इत्यादि कारणोसें, वासुपूज्य नाम दिया । पाडेका लंछनयुक्त, लालवर्ण, शरीरप्रमाण ७० धनुष हुवा । तीन ज्ञानसहित, महातेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावलीकर्म निर्जरार्थे विवाह किया। अवसर आये, लोकांतिक देवताके वचनसें, कुमारावस्था में संवत्सरपर्यंत मोटो दान देके, फाल्गुन सुदि १५ दिन चंपानगरीमें, छठतप करके, पाडलवृक्षके नीचे, ६०० पुरुषोंके साथ, दीक्षा ग्रहण करी । उसबखत चोथो मनपर्यवज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो सुनंदके घरे, परमानक्षीरसे हुवो । १ वरस छद्मस्थपणे विहार करके, फेर चंपानगरीमें आये । वहां छठतप सहित, मिति माघसुदि २ के दिन, लोकालोक प्रकाशक, केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न हुँवा, तब चतुर्निकाय देवगणका कीया हुवा समोसरणमें, १२ पर्षदाके सन्मुख, भगवान् धर्मोपदेश देके, चतुर्विध संघकी स्थापना करी । भगवान्के ७२ हजार (७२०००) सर्व साधु हुये (जिसमें) सुभूम प्रमुख ६६ गणधर पदधारक हुये ॥ धारणी प्रमुख १ लाख (१०००००) साधवियों हुई ॥ १० हजार (१००००) वैक्रियलब्धि धारक हुये ॥ चोपनसो (५४००) अवधि ज्ञानीभये ॥ ६ हजार (६०००) केवल ज्ञानीभये ॥ पैंसठसो (६५००) मनपर्यव
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