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७२००० श्राविका हुई ( इत्यादिक ) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेत शिखर जी पर्वतपर, १००० साधुवोंकेसाथ, १ मासका अनशन कीया । काउसग्ग मुद्राइं, आत्मगुणके ध्यानसे, सर्व कर्माकों खपायके, मिति मिगसरसुदि १० के दिन, ८४००० वर्षको आयुष्यमान पूरो करके, सिद्धिस्थानको प्राप्ति भये । शासनदेव यक्षराज । शासनदेवी धारणी । देवगण । हस्तियोनी । मीनराशि । अंतरमान १ हजार कोडवर्ष । सम्यक्त पायेवाद तीसरे भवमें मोक्ष गये ॥ इहां १८ मा, तथा १९ मा, तीर्थकरके बीचमें, ६ ठा पुरुष पुंडरीक वासुदेव, तथा आनंदनामा बलदेव, बलिनामा प्रतिवासुदेव हुये इस पीछे ८ मा सुभूमनामें चक्रवर्ति हुवा । इस पीछे, दत्तनामा ७ मा वासुदेव, तथा नंदनामा बलदेव, और प्रह्लादनामा प्रतिवासुदेव भये ॥ इति ५५ बोलगर्भित ७ मा चक्रवर्ति, १८ मा श्री अरनाथ स्वामीका अधिकार संपूर्ण ॥ १८॥
॥ अथ १९ मा श्री मल्लिनाथखामी अधिकारः॥ मिथिला नामा नगरीमें, इक्ष्वाकुवंशी, कुंभनामें राजा हुवा । तिसके प्रभावतीनामें पट्टराणी हुई । जिसकी कूखमें, जयंत विमानथी चवके, मिति फागुण सुदि ४ के दिन, भगवान् उत्पन्न भये । तब मातायें, गजादि अग्निशिखापर्यंत, १४ स्वप्ना प्रगटपणे मुखमें प्रवेशकर्ता हुवा देखा ( पीछे ) सर्व दिशा सुभिक्षसमें, मिगसर सुदि ११ के दिन, अश्विनीनक्षत्रे जन्म कल्याणक हुवा । उसीवखत ५६ दिशा कुमारीयों मिलके
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