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चादी विरुद धारक हुवे ॥ ३६०० अवधि ज्ञानी हुवे ॥ ४५०० केवल ज्ञानी हुवे ॥ ९०० चवदे पूर्वधारी हुवे ॥ २०४००० श्रावक हुवा ॥ ४१३००० श्राविका हुई (इत्यादिक) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें, समेत शिखरजी पर्वतपर, १००८ साधुवोंकेसाथ, १ मासका अनशन ग्रहण कीया काउसग्ग मुद्राई, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्मोकुं खपायके, मिति ज्येष्ट सुदि ५ के दिन, १० लाख वर्षको आयुष्य पूरन करके, सिद्धिस्थानकों प्राप्त भए ॥ शासनदेव किन्नर यक्ष । शासन देवी कंदो । देवगण । मंजार योनी । कर्कराशि । अंतरमान ३ सागरोपम । सम्यक्तपायेवाद तीसरे भवमें मोक्ष गये ॥ (इनोंकेबारे)५ मा पुरुष सिंहनामा वासुदेव (अरु) सुदर्शन नामा बलदेव (तथा) निशुंभ नामा प्रति वासुदेव हुवा ॥
॥ इति ५५ बोल गर्भित श्री धर्मनाथाधिकारः ॥ १५ ॥ १५ मा श्री धर्मनाथ स्वामीके पीछे, अरु १६ मा श्री शांतिनाथ स्वामीके पहिले, तीसरा मघवा नामा चक्रवर्ति (और) चोथा सनत्कुमार नामा चक्रवर्ति हुवा ॥
॥ अथ १६ मा शांतिनाथ स्वामी अधिकारः॥ हस्तनापुर नामा नगरमें, इक्ष्वाकुवंशी, विश्वसेन नामें राजा हुवा (तिसके) अचिरा नामें पट्टराणी, जिसकी कुंखमें, सर्वार्थसिद्ध नामा देवलोकसें चवके, मिति भाद्रवा वदि ७ के दिन, भगवान् उत्पन्न भए । तब मातायें, गजादि अग्निशिखापर्यंत, १४ स्वप्ना प्रगटपणे मुखमें प्रवेश कर्चा देखा (पीछे) सर्व दिशा
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