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सुभिक्षसमें, ज्येष्ट वदि १३ के दिन, भरणी नक्षत्रे, जन्म कल्याणक हुवा ॥ उसी वखत ५६ दिशा कुमारीयों मिलके सूतिका महोच्छव कीया ( पीछे) ६४ इंद्र मेरु पर्वतपर, भगवानकों ले जायके, जन्म महोच्छव कीया (तिस पीछे) विश्वसेन राजायें १० दिवसपर्यंत, मोटो जन्म महोच्छव करके, सर्व न्याती गोती प्रजागणकों मनसा भोजन करायके, सर्वके सन्मुख शांतिकुमर नाम स्थापन कीया ॥ नाम स्थापनका यह हेतु है, गर्भमे भगवान्के उत्पन्न होनेसें, पूर्वे जो मरीआदिक रोगोपद्रव बहुतथा, वो शांति हो गया (इस कारणसें) शांति कुमर नाम दिया। हिरणका लांछनयुक्त, कंचनवर्ण, शरीरप्रमाण ४० धनुष हुवा। ३ ज्ञान सहित, महातेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावलीकर्म निर्जरार्थे, चक्रवर्तिपद धारण करके, ६४ हजार खियांकों परण्या ( पीछे ) अवसर आये लोकांतिक देवताके वचनसें, मिति ज्येष्ठ वदि १४ के दिन, हस्तनापुर नगरमें, छठ तप करके नंदीवृक्षके नीचे, १००० पुरुषोंकेसाथ दीक्षा ग्रहण करी ( उस बखत) चोथो मनपर्यवज्ञान उत्पन्न हुवो । प्रथम छठको पारणो, सुमित्रके घरे परमानक्षीरसें हुवो । १ वर्ष छद्मस्थपणे विहार करके, फिर हस्तनापुर नगरमें आये । वहां छठ तप सहित, पोपसुदि ९ के दिन, लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान केवल दर्शन उत्पन्न हुवा (उस वखत) चतुर्निकाय देवगण का कीया हुवा समोसरणमें, १२ परपदाके सन्मुख, भगवान् धर्मोपदेश देके चतुर्विध संघकी स्थापना करी । भगवान्के ६२ हजार सर्व साधु हुये
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