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( इनके बखत ) त्रिपृष्ट नामें पहला वासुदेव, अचल नामें बलदेव हुवा ( जिणोंनें ) अपना वैरी, अश्वग्रीव प्रति वासुदेवकों मारके, भरत क्षेत्रके तीन खंडका राज करा ॥ ( और ) इनोंके समयमें, वैताढ्य पर्वतसें, श्रीकंठ नामा विद्याधरके पुत्र पद्मोत्तर विद्याधरकी बेटीकों अपहरण करके, अपना बहनोई राक्षसवंशी, लंकाका राजा, कीर्त्तिधवलके शरण में गया ( तब ) कीर्त्तिधवलनें तीनसे जोजन प्रमाण, वानर द्वीप, उनके रहनेकों दिया । तिनके संतानोमेंसे चित्र विचित्र, विद्याधरोनें, विद्यासें बंदरका रूप बनाया, ( तब ) वानरद्वीप के रहनेसें, और वानरका रूप बनानेसें, वानरवंशी प्रसिद्ध हुये । तिनोंकी ओलादमें वाली, सुग्रीवादिक भए है ॥
॥ अथ १२ मा श्री वासुपूज्यखामी अधिकारः ॥ चंपापुरीनामा नगरी में, इक्ष्वाकुवंशी, वसुपूज्यनामे राजा हुवा ( उसके ) जयाना में पट्टराणी, जिसकी कुंखमें, प्राणतनामा १० मा देवलोक चवके, मिती ज्येष्टसुदि ९ के दिन, भगवान् उत्पन्न हुये । तब मातायें, गजादि अग्निशिखापर्यंत १४ स्वप्ना प्रगटपणें मुखमें प्रवेश कर्ते देखे । पीछे सर्व दिशा सुभिक्षसमें, मिति फाल्गुनवदि १४, शतभिषानक्षत्रे, जन्मकल्याणक हुवा ( उसीबखत ) ५६ दिशाकुमारीयों मिलके सूतिकामहोच्छव कीया ( पीछे ) ६४ इंद्र मेरुपर्वतपर भगवानकों लेजायके जन्ममहोच्छव कीया ( तिस पीछे ) वसुपूज्य राजायें, १० दिनपर्यंत, मोटो जन्म महोच्छव करके, सर्व न्याती प्रजागणकुं मनसा भोजन करायके,
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