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किया (पीछे) ६४ इंद्र मेरु पर्वतपर भगवान्कों ले जायके, जन्म महोच्छव कीया (तिस पीछे) सिंहसेन राजायें १० दिवसपर्यंत मोटो जन्म महोच्छव करके, सर्व न्याती गोती प्रजा. गणों मनसा भोजन करायके, सर्वके सन्मुख, अनंतनाथ नाम स्थापन कीया (नाम स्थापनका यह हेतु हे) कि भगवान् गर्भमें आये, तब रत्नजडित चित्रविचित्र मोटी दाममाला, खप्नमें मातायें देखी । तिस कारणसें, अनंतनाथ नाम स्थापन किया सींचाणका लंछनयुक्त, कंचनवर्ण, शरीर प्रमाण ५० धनुष हुवा । तीन ज्ञानसहित, महा तेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे विवाह कीया, क्रमसें राज्यपद धारन कीया । अवसर आये, लोकांतिक देवताके वचनसें, संवत्सरपर्यंत मोटो दान देके, वैशाख वदि १४ के दिन, अयोध्या नगरीमें, छठ तप करके, अशोक वृक्षके नीचे, १००० पुरुषोंके साथ दीक्षा ग्रहण करी । उस वखत चोथो मनपर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, विजय राजाके घरे परमान्न क्षीरसें हुवो ॥ ३ वर्ष छद्मस्थपणे विहार करके, अयोध्या नगरीमें आये । वहां छठ तप सहित, वैशाख वदि १४ के दिन, लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान उत्पन्न हुवा । उस वखत चतुर्निकाय देवगणका कीया हुवा समोसरणमें १२ परपदाके सन्मुख, भगवान् धर्मोपदेश देके, चतुर्विध संघकी स्थापना करी । भगवान्के ६६००० सर्व साधु हुवे (जिसमें) जस प्रमुख ५० गणधर पद धारक भए । पद्मा प्रमुख ६२००० सर्व साध्वी हुई । ८०००
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