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साधु हुए जार
॥ ६९ कर
दीक्षा ग्रहण करी । उस बखत चोथो मनपर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, नंदरायके घरे, परमान क्षीरसें हुवो ॥ दो वर्ष छमस्थपणे विहार करके (फेर) सिंहपुरी नगरीमें आए वहां छठ तप सहित, मिति माघ वदि ३० के दिन, लोकालोक प्रकाशक केवल ग्यान उत्पन्न भया ( उस बखत ) चतुर्निकाय देवगणका किया भया समवसरणमें, १२ परपदाके सन्मुख, भगवान् धर्मोपदेश देके, चतुर्विध संघकी स्थापना करी ॥ भगवान्के ८४ हजार (८४०००) सर्व साधु हुए (जिसमें ) कच्छप प्रमुख ७६ गणधर पद धारक भए ॥ ११ हजार (११०००) वेक्रियलब्धि धारक भए॥ ६ हजार (६०००) अवधिज्ञानी भए । ६ हजार (६०००) मनपर्यव ज्ञानी भए ॥ ६ हजार ५ सै (६५००) केवल ज्ञानी भए ॥ १३ सै (१३००) चौदै पूर्वधारी हुए ॥ ५ हजार (५०००) वादी विरुदधारक भए ॥ १० लाख ३ सै (१००३००) साधवीयों भई ।। २ लाख ७८ हजार (२७८०००) श्रावक भए ॥ ४ लाख ४८ हजार (४४८०००) श्राविका हुई ॥ इत्यादिक बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, (अंतसमें ) समेत सिखरजी पर्वत ऊपर, १००० साधुवोंकेसाथ, एक मासका अणसण ग्रहण किया ॥ काउसग्ग मुद्रायें, आत्मगुणके ध्यानसे, सर्व कर्माकों खपायके, मिति श्रावण वदि ३ के दिन, ८४ लाख वरपका आयुष्य पूरण करके सिद्धि स्थानकों प्राप्त हुए ॥ शासनदेव यक्षराज। शासनदेवी मानवी । देवगण । वानर योनी। मकर राशि । अंतरमान ५४ सागरोपम । सम्यक्त पाये वाद तीसरे भवमें मोक्ष गए। .... इति ५५ बोल गर्भित श्री श्रेयांस जिन अधिकारः ॥
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