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वद १२ के दिन, अनुराधा नक्षत्रे जन्म कल्याणक हुवा ( तब ) महसेन राजायें, १० दिनकाउछव करके, चंद्रप्रभ कुमर नाम दिया । चंद्रमाके लांछनयुक्त, स्वेतवर्ण, शरीर प्रमाण १५० धनुष, तीन ज्ञानयुक्त, महा तेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे, विवाह करके, क्रमसें राज्यपद धारण कीया । अवसर आये, लोकांतिक देवताके वचनसें, संवत्सर पर्यंत मोटो दान देके, मिति पोष वदी १३ के दिन, चंद्रपूरी नगरीमें, छठ तप करके, नागवृक्षके नीचे, १००० पुरुषोंकेसाथ दीक्षा ग्रहण करी ( उस वखत ) चोथो मनपर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, सोमदत्तके घरे, परमान्न क्षीरसें हुवो || ३ माश छद्मस्थपणें विहार करके चंद्रपुरी नगरीमें आए ( वहां ) छठ तप संयुक्त, मिति फागुण यदि ४ के दिन, लोकालोक प्रकाशक, केवल ज्ञान उत्पन्न भया ( उस बखत ) चतुर्निकाय देवगणका किया हुवा, समवसरण में बैठकें, १२ परषदाके सन्मुख, धर्मोपदेश देके, चतुविघ संघकी स्थापना करी । भगवानके सर्व २ लाख ५० हजार (२५००००) साधु भए ( जिसमें ) ९३ दिन प्रमुख गणधर हुए || १४ हजार (१४००० ) वैक्रिय लब्धि धारक हुए ॥ ८ हजार (८००० ) अवधि ज्ञानी हुए ।। ८ हजार (८०००) मनपर्यव ज्ञानी हुए ।। १० हजार (१०००० ) केवल ज्ञानी हुए || २ हजार (२०००) चवदे पूर्वधारी हुए ।। ७ हजार ६ से (७६००) वादी विरुदधारक भए || ३ लाख ८ हजार (३०८०००) सुमना प्रमुख साधवी हुई || २ लाख ५० हजार (२५०००० ) श्रावक हुए ||
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