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४ लाख ७९ हजार (४७९०००) श्राविका हुई ( इत्यादिक) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेतशिखरजी पर्वतके ऊपर, १००० साधुवोंकेसाथ, १ माशका अणसण ग्रहण कीया । काउसग्ग मुद्रायें, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्मकों खपायकै, मिति भाद्रवा वदि ७ के दिन, दश लाख पूर्वका आउखा पूरण करके, सिद्धिस्थानकों प्राप्त भए ॥ शासनदेव विजय यक्ष । सासनदेवी भृकुटी । देवगण । मृग योनि । वृश्चिक राशि । अंतरकाल ९० कोडी सागरोपम । सम्यक्त पाएवाद, तीसरे भवमें मोक्ष गए ॥
इति ८ मा श्री चंद्राप्रभु स्वामीका अधिकारः । ॥ अथ ९ मा श्री सुविधनाथ स्वामी अधिकारः ॥ काकंदी नगरीमें, इक्ष्वाकवंशी, सुग्रीवनामें राजा हुवा (तिसके) रामा नामें पट्टराणी । जिसकी कूखमें, नवमा आनत नामा देवलोक ऐसें चवके, मिति फागुण वदि ९ के दिन भगवान् उत्पन्न भया । तब मातायें १४ स्वप्ना देखा ( पीछे ) सर्व दिशा सुभिक्षसमें, मिति पोष वद १२, मूलनक्षत्रे जन्मकल्याणक हुवा ( तब ) सुग्रीव राजायें १० दिनपर्यंत जन्म महोच्छव करके, सर्व गोत्रियोंके सन्मुख, सुविधिकुमर नाम स्थापन किया । मगरमच्छका लंछनयुक्त, स्वेतवर्ण, शरीरप्रमाण १०० धनुष हुवा । तीन ज्ञानयुक्त, महातेजस्वी १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे विवाहकरके, क्रमसें राज्यपद धारण किया। अवसरआये। लोकांतिक देवताके वचनसें, संवत्सर पर्यंत मोटो दान देके, मिति पोस वदि
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