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भगवानकै (३०००००) तीन लाख सर्व साधू हुए (जिसमें ) विदर्भ प्रमुख ९५ गणधर भए ॥ १५ हजार तीनसै (१५३००) वैक्रीयलब्धि धारक भए ॥ ९ हजार (९०००) अवधि ज्ञानी हुए। ८ हजार दोढसो (८१५०) मनपर्यव ज्ञानी हुए ॥ ११ सै (११००) केवल ज्ञानी हुए २ हजार तीस (२०३०) चवदै पूर्वधारी हुए । ८ हजार ४ सै (८४००) वादी विरुद धारक हुए ॥ ४ लाख ३० हजार ८ (४३०००८) सोमा प्रमुख साधवी हुई ॥ २ लाख ५७ हजार (२५७०००) श्रावक हुए ॥ ४ लाख ९३ हजार (४९३०००) श्राविका हुई ( इत्यादिक) बहोतसे जीवोंका उद्धार करकै, अंतसमें, समेत शिखरजी पर्वतकै ऊपर, पांचसै ५०० साधुवोंकैसाथ, एक माशका अणसण ग्रहण कीया । काउसग्ग मुद्रायें, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्म खपायकै, मिति फाल्गुण वदी ७ के दिन, वीस लाख पूर्वका आयुष्य पूर्ण करकै, सिद्धि स्थानकुं प्राप्त भए ॥ सासन देव मातंगजक्ष । सासन देवी सांता । राक्षस गण मृग योनी । तुल राशी। अंतर्काल ९ सो कोडी सागरोपम । सम्यक्त पायेवाद, तीसरै भवमें मोक्ष गए ॥ इति ५५ बोल गर्भित श्री सुपार्श्वनाथस्वामी अधिकार संपूर्ण ॥
॥ अथ ८ श्री चंद्राप्रभू खामी अधिकारः॥ चंद्रपुरी नामा नगरीमें, इक्ष्वाकवंशी, महसेन नामें राजा (जिसक) लक्ष्मणा नामें पट्टराणी। जिसकी कूखमें, जयंतनामें विमानसें आयकै, मिति चैत्र कृष्ण ५ के दिन उत्पन्न भया । मातायें चवदै स्वप्न देखा पीछे सर्व दिशा सुभिक्ष समें, मिति पोष
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