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महिष योनि । कन्या राशि । अंतर काल ९ हजार कोड सागरोपम । सम्यक्त पाएवाद तीसरे भवमें मोक्ष गए । ॥ इति ५५ बोल गर्भित ६ श्री पद्म प्रभुका अधिकारः ॥६॥
॥ अथ ७ श्री सुपार्श्वनाथजी अधिकारः॥ वनारशी नगरीमें, इक्ष्वाकवंशी, प्रतिष्ट नामें राजा हुवा (तिशके ) पृथ्वी नामें पट्टराणी, जिसकी कूखमें, सप्तम ग्रेवेयक देव विमानसें आयके । मिति भाद्रवा वदी ८ के दिन, भगवान् उत्पन्न भया ( तब ) मातायें चवदै स्वप्न देखा । पीछे सर्व दिशा सुभिक्ष समें, मिति जेष्ट शुद २ के दिन विशाखा नक्षत्रे, जन्म कल्याणक हुवा । साथियेका लांछन युक्त । कंचन वर्ण, सरीर प्रमाण २ सै (२००) धनुष हुवा। तीन ज्ञानयुक्त । महा तेजस्वी। एक हजार आठ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे, विवाह करके, क्रमसें राज्यपद धारण किया । अवसर आए लोकांतिक देवताकै वचनसें, संवत्सर पर्यंत मोटो दान देके, मिति जेष्ट सुदी १३ के दिन, वणारशी नगरीमें, छठ तप करकै, सरीश वृक्षकै नीचे, एक हजार पुरुषोंकैसाथ, दिक्षा ग्रहण करी ( उस वखत ) चोथो मनपर्यवज्ञान उपज्यो । प्रथम छठको पारणो, माहेंद्रदत्तकै घरे, परमानसें हुवो । नवमाश छद्मस्थपणे विहार करकै, फेर वनारशी नगरीमें आये । वहां छठ तप संयुक्त, फागुण वदी ६ के दिन, लोकालोक प्रकाशक, केवल ज्ञान उत्पन्न हुवा ( उस वखत) चतुर्निकाय देवगणका किया भया, समवसरणमें, बारह परखदाकै सन्मुख भगवान् धर्मोपदेश देके, चतुर्विध संघकी स्थापना करी ॥
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