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शण ग्रहण कीया ॥ काउसग्ग मुद्रायें, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्मकों खपायके, मिति चैत्र शुक्ल ९ के दिन, ४० लाख पूर्वका आउखा पूरणकरके, सिद्धिस्थानकों प्राप्त भए ॥ शासनदेव तुंवरुयक्ष । शासनदेवी महाकाली । राक्षसगण । मूषक योनि । सिंहराशी । अंतरकाल ९० हजार कोड सागरोपम । सम्य तपाए वाद तीसरे भवमें मोक्षगए ॥ इति ५५ बोलगर्भित श्री सुमतीनाथ खामीका अधिकारः ॥
॥ अथ ६ ठा श्री पद्मप्रभु अधिकारः ॥ कोसंबी नगरीमें, इक्ष्वागवंशी, श्रीधरनामें राजा (जिसके) सुसीमा पट्टराणी, तिसकी कूखमें, उपरिम |वेयक देवविमानसे चवके, मिति माघ कृष्ण ६ के दिन उत्पन्न हुवा । मातायें १४ स्वप्ना देखा ( पीछे ) सर्व दिशा सुभिक्ष समें, मिति कार्तिक कृष्ण १२ के दिन, चित्रा नक्षत्रे, जन्म कल्याणक हुवा ( तब) श्रीधर राजायें १० दिन पर्यंत उछव करके, सर्व गोत्रियों के सन्मुख, पद्मकुमर नाम स्थापनकिया ( नाम स्थापनका येहेतू हे ) माताने पद्म सज्यापर सोनेंका डोहला उत्पन्न हुवा था (और) भगवान्का पद्म कमलके समान रंग था ( इससे ) पद्मकुमर नाम हुवा। कमलका लंछन युक्त। रक्तवर्ण । शरीर प्रमाण २५० धनुष हुवा । तीन ज्ञानयुक्त । महातेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावलि कर्म निर्जरार्थे, विवाह करके, क्रमसें राज्यपद धारण किया । अवसर आयेसें, लोकांतिक देवताके वचनसें, संवत्सरपर्यंत मोटो दानदेके, मिति कार्तिक कृष्ण १३ कों, कोशंबीनगरीमें,
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