________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ अब दूसरा श्री अजितनाथस्वामी अधिकारः॥
अजोध्यानगरीमें, भरतजीकेपीछे, असंख्य राजा हो चुके (तब) इक्ष्वागवंशी जितशत्रु राजा भया । तिसके विजयानामे राणी। तिसकी क्रूखमे, विजय अनुत्तर विमानसें, वैशाखसुद १३ के दिन, भगवान अवतार लिया ॥ मातायें गजादि अग्निशिखापर्यंत, १४ खमा प्रगटपणे मुखमें प्रवेश करता देखा। गर्भ में ८ मास २५ दिन रहके । मिति माघ शुक्ल ८ के दिन, रोहिणी नक्षत्रे जन्म हुवा (तब ) जितशत्रु राजायें १० दिन पर्यंत जन्म उच्छव करके, अजितकुमर, नाम स्थापन किया । लांछन हस्ती । शरीरमान ४५० धनुष । कंचनसमानवर्ण, तीन ज्ञानयुक्त, महातेजस्वी । भोगावलीकर्म निर्जरार्थे, विवाहकरके, क्रमसें राज्यपदकों प्राप्त हुवे ( पीछे ) अवसर आये, लोकांतिक देवताके वचनसें, संवत्सरपर्यंत मोटो दान देके, माघ कृष्ण ९ के दिन, अयोध्या नगरीमें, छठतप करके, शालवृक्षके नीचे १ हजार (१०००) पुरुषोंकेसाथ दीक्षा ग्रहण करी । ( उसीवखत ) भगवानकों चोथा मनपर्यव ग्यान उत्पन्न भया । प्रथम छठका पारणा, परमानसें, ब्रह्मदत्त व्यवहारीके घरे हुवा ॥ १२ बरप छद्मस्थपणे विहार करके, अयोध्या नगरीगये ( तब ) वहां मिती पोषवदि ११ के दिन, लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान उत्पन्न भया । ( तब ) देवगणका कीया हुवा, समवसरणमध्ये बैठके, १२ परषदाके सन्मुख, धर्मोपदेश करकें, चतुर्विधसंघकी स्थापना करी । भगवान्के सिंहसेन प्रमुख ९५ गणधर हुवे ॥ १ लाख (१०००००) सर्व
For Private And Personal Use Only