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धर्के । दूसरा चक्रवर्त्ति हुवा । इनके जन्हुकुमार प्रमुख ६० हजार ( ६०००० ) पुत्रभए । वो सर्व समुदाई कर्मकेयोग, एकदा भरतचक्रवर्त्तिका कराया हुवा, सुवर्णमई अष्टापद पर्वतके ऊपर, रत्नमई, निज २ प्रमाणोपेत २४ भगवान्का मंदिर देखकें, पर्वतकी रक्षाके निमित्त, बहुत ऊंडी खाई खोदकें, गंगानदी के जलसे चउफेर भरदीनी । तब उस जमीनके अधिष्ठित, देवगणकों तकलीच होनेसें एकसाथ ६० हजार ( ६०००० ) पुत्रोंको भस्म कर दीया | इसकी मालुम होनेसें, सगरचक्रवर्त्तिकों बहुतसा दुःखभया (पीछे) सौधर्मेंद्र के मुखसें भवस्थितिका स्वरूप सुणकें दुःख दूर किया ( पीछे जब ) सगर पुत्रोंके लाया हुवा, गंगाकाजल बढता थका, अष्टापद पर्वतके चौफेर देशोंमे उपद्रव करने लगा ( तब ) जन्दुकुमारका पुत्र, भागीरथ, सगर चक्रवर्त्तिकी आज्ञा पायके, दंडरनसें जमीनकों खोदकें, गंगाजलका प्रवाहकुं, पूर्व समुद्र में मिला दिया (इसीसें ) गंगाका नाम लोकीकमें जान्हवी ( तथा ) भागीरथी कहनें लगे || और यह खारासमुद्र पिण, देवसहायसें, सगरका लाया हुवा सत्रुंजयकी रक्षाकेलिये भरतक्षेत्रमें मालुम हो रहा है ( और ) सगर चक्रवर्त्तिकी आज्ञासें वैताढ्य पर्वतसे आयके, लंकाके टापूमें, प्रथम घनवाहन राजा हुवा ( इस ) घनवाहन राजाके वंशमें, रावण, विभीषणादिक भए हैं ( सो ) राक्षसी विद्यासें राक्षस कहलाए ( इसीसें ) लंका के टापूका नाम राक्षसदीप हुवा (और) सिद्धगिरीके ऊपर, मंदिरोंका दूसरा उद्धार, सगरचक्रवर्त्तिनें करा ( अरु ) बडा दा
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