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नेसरी हुवा । अंतमें श्री अजितनाथ स्वामीकेपास दीक्षा लेके, शुद्ध चारित्रसें केवल ज्ञान पायके, मोक्षकों प्राप्त भया ।। श्री ऋषभदेव स्वामी निर्वाणसें, पंचासलाख कोड सागरोपम व्यतीत होनेसें, श्री अजितनाथ स्वामीका निर्वाण हुवा || इति ५५ बोलगर्भित दूसरा अजितनाथस्वामी ( तथा ) दूसरा सगर चक्रवर्तिका अधिकारः संपूर्णः ॥
॥ अथ ३ श्री संभवनाथस्वामी अधिकारः ॥
सावत्थी नगरीमें, इक्ष्वाकवंशी, जितारी नामे राजा हुवा ( तिसके ) सेना नामे पटराणी, जिसकी कुखमें, ऊपरला ग्रैवेयक विमानसें आयके, मिति फाल्गुन शुक्ल ८ के दिन, भगवान् उत्पन्न भया ( पीछे ) सर्व दिशा सुभिक्षसमें । मिति मिगसर शुक्ल १४, मृगशिर नक्षत्रे, जन्म कल्याणक हुवा ( तब ) जितारी राजायें १० दिन पर्यंत उच्छव करके, संभव कुमर नाम स्थापन किया । अश्वका लंच्छन युक्त, कंचनवर्ण, शरीर प्रमाण चार ( ४०० ) धनुष हुवा । तीन ज्ञानयुक्त | महा तेजस्वी । १ हजार ८ आठ (१००८) लक्षणालंकृत । भोगावली कर्म निर्जरार्थे, विवाह करके, क्रमसें राज्यपद धारन किया । अवसर आये, लोकांतिक देवता के वचनसें, संवत्सर पर्यंत मोटो दान देके, मिति मिगसर शुद्ध १५ के दिन, सावत्थी नगरीमें छठ तप करके, प्रियालु वृक्षके नीचे, १ हजार ( १००० ) पुरुषोंके - साथ, दिक्षा ग्रहण करी ( उस बखत ) चोथा, मनपर्यवज्ञान, उत्पन्न भया । प्रथम छठका पारणा, परमान क्षीरसैं, सुरिंद्रदत्त
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