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॥ अथ ४ था अभिनंदन स्वामी अधिकारः ॥ अयोध्या नगरीमें, इक्ष्वाकवंशी, संवर नामें राजा हुवा । तिसके सिद्धार्था नामें पट्टराणी । जिसकी कूखमें, जयंत नामा अनुत्तर विमानसें आयके, मिति वैशाख शुद्ध ४ के दिन उत्पन्न भया ( पीछे ) सर्व दिशा सुभिक्षसमें, मिति माघ शुद २, पुनर्वसु नक्षत्रे, जन्मकल्याणक हुवा ( तब ) संवरराजायें दशदिनका जन्म उच्छव करके, अभिनंदनकुमर, नाम स्थापन किया । वानरके लंछन युक्त, कंचनवर्ण, शरीरप्रमाण ३५० धनुष हुवा । तीन ज्ञानयुक्त, महातेजस्वी, १ हजार ८ (१००८) लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे, विवाह करकें, क्रमसें राज्यपद धारण किया। अवसर आये लोकांतिक देवतांके वचनसें, संवत्सर पर्यंत मोटो दान देकें, मिति माघ शुक्ल १२ के दिन, अयोध्यानगरीमें, छठ तप करके, प्रियंगु वृक्षके नीचे, १ हजार (१०००) पुरुषोंकेसाथ दीक्षा ग्रहण करी । उसवखत, चोथो मनपर्यवज्ञान उत्पन्नभयो । प्रथम छठको पारणो, परमान क्षीरसें, इंद्रदत्त व्यवहारीके घरे हुवो । १८ वरष छद्मस्थपणे विहार करके (फेर) अयोध्यानगरीमें आए (वहां ) छठतप संयुक्त, मिति पोष शुक्ल १४ के दिन, लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान उत्पन्न भया । उसबखत चतुर्निकाय देवगणका किया हुवा समवसरणमें, १२ परिषदाके सन्मुख, धर्मोपदेश देकें, चतुर्विध संघकी स्थापना करी ॥ ३ लाख (३०००००) सर्व साधु मुनिराज भए (तिसमें ) वज्रनाभ प्रमुख ११६ गणधर भए ॥ १९ हजार (१९०००) वैक्रिय लब्धिधारक भए ॥ ९ हजार ८ से
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