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त्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्माकों खपायके, मिति माघ वदि १३ के दिन, १० हजार (१०००० ) पुरुषांके साथ, ८४ पूर्व लाख वरषको आऊषो पूरण करके, सिद्धिस्थानको प्राप्त भए ॥ ( जब) श्री ऋषभदेव स्वामीका कैलास ( तथा) दूसरा नाम अष्टापद पर्वत ऊपर, निर्वाण हुवा ( तब ) ६४ इंद्रादि सर्व देवता निर्वाण उच्छव करनेकों आए, तिन सर्व देवताओंमेंसु, अग्निकुमार देवतानें श्री ऋषभदेवकी चितामें अनि लगाई ( तबसेंही) यह श्रुति लोकमें प्रसिद्ध हुई है ( अग्नि मुखावै देवा ) अर्थात् , अग्नि कुमार देवता, सर्व देवताओंमें मुख्य है (और) अल्प बुद्धियोंनें तो इस श्रुतिका ऐसा अर्थ बना लिये हैं (कि) अमि जो है, सो तेतीस कोड देवताओंका मुख हे ॥ भगवानके निर्वाणका स्वरूप, सर्व आवश्यक सूत्र, ( तथा ) जंबुद्वीपपनत्तीसें जान लैना ( जब ) भगवानकी चितामेंसें, दाढां दांत वगैरे सर्व इंद्र, देवतादिक, अपनें २ देवलोकमें, पूजाके निमत्त लेजाने लगे ( तब ) वृद्ध श्रावक ब्राह्मण लोक मिलकर, बहुत विनय संयुक्त, देवताओंसें याचना करने लगे ( तब ) देवता लोक अहो याचका २, ऐसा बोलके देने लगे ( तबसें ) ब्राह्मणांकों याचक कहने लगे (और) ब्राह्मणोंनें, श्री ऋषभदेवकी चितामेंसें अग्नि लेकर, अपनें २ घरोंमें स्थापन करते हुए ( इससें ) ब्राह्मणांकों आहितामय कहने लगे। श्री ऋषभदेवकी चिता जले पीछे, दाढादिक तो सर्व इंद्रादिक ले गए ( बाकी) भसी अर्थात् राख रह गई, सो ब्राह्मणोंने थोडी थोडी सर्व लोकोंकों दीनी ( तब ) उस राखकों लेकै सर्वनें अपने
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