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करते थे ( तब ) याज्ञवल्क्य, सुलसाके पुत्र उत्पन्न भया ( तब ) लोकोंके उपहासके भयसें, उस लडकेकों, पींपलके वृक्ष नीचे छोडकर, दोनुं भागके कहा इं चले गए | ( यह वृत्तांत ) सुलसाकी बहन सुभद्रानें सुना । ( तब ) तिस बालककेपास आई ( जब ) बालककों देखा ( तो ) पींपलका फल स्वयमेव मुखमें पडा हुवा चबोल रहा हे ( तब ) तिसका नाम भी पिप्पलाद रक्खा । ( और ) तिसकों अपनें स्थानमें ले जाके यत्तसें पाला ( अरु ) वेदादि शास्त्र पढाए ( तब ) पिप्पलाद बडा बुद्धिमान् हुवा | बहुत वादियोंका अभिमान दूर किया ( पीछे ) तिस पिप्पलादकेसाथ सुलसा (और) याज्ञवल्क्य, यह दोनुं वाद करनेंकों आए ( तब ) तिस पिप्पलादनें दोनुंकों वादमें जीत लिया (और) सुभद्रा मासीके कहनेंसें जान गया ( कि ) यह दोनुं मेरा माता, पिता है | और मुझे जन्मतेकों निर्दयी होकर छोड़ गये थे ( इससे ) बहुत क्रोध में आया ( तब ) याज्ञवल्क्य ( अरु ) सुलसाके आगे । मातृमेध, पितृमेध यज्ञोंकों युक्तियोंसें स्थापन करके, मातृपितृमेधमें, सुलसा याज्ञवल्क्यकों मारके होम करा (यह ) पिप्पलाद, मीमांसक मतका मुख्य आचार्य हुआ । इसका वातली नामें शिष्य हुवा ( तबसें ) जीव हिंसा संयुक्त यज्ञ प्रचलित हुए ( इससे ) याज्ञवल्क्यके वेद बनानें में कुछभी संका नहीं ( क्यों क) वेद लिखा है ( याज्ञवल्केति होवाच ) अर्थात् याज्ञवल्क्य ऐसें कहता हुवा ( तथा ) वेदमें जो साखा है, वे वेदकर्त्ता मुनियोंकेही सब वंस हैं ( इसी तरे ) श्री आवश्यकजी मूल
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