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यज्ञवल्क्य । तिसका पुत्र याज्ञवल्क्य । इस कहनेसेंमी यही प्रतीत होता है। जो यज्ञोंकी रीति, प्राय याज्ञवल्क्यसेंही चली हे ( तथा ) ब्राह्मण लोकांके शास्त्रमें भी लिखा है ( कि ) याज्ञवल्क्यनें पूर्वी ब्रह्मविद्या वमके, सूर्यपासे, नवीन ब्रह्मविद्या सीखके प्रचलित करी ( इस्से ) यही अनुमान निकलता है ( जो ) याज्ञवल्क्यनें, प्राचीन वेद छोडके नवीन वेद बनाये । ( इस्सें ) वर्त्तमान ४ वेद (और) जीवहिंसायुक्त यज्ञकी उत्पत्ति, प्रायः याज्ञवल्क्यादिकोंसें हुई संभव है ॥
( तथा ) श्री तेसठ शलाका पुरुष चरित्र ग्रंथ में, आठमें पर्व के दूसरे सर्गमें, ऐसा लिखा है ( कि ) काशपुरी में, दो सन्यासणियां रहती थी, तिसमें एकका नाम सुलसा था ( अरु ) दूसरीका नाम सुभद्रा था, (यह ) दोनंही वेद अरु वेदांगोंकी जानकार थी । ( तिस ) दोनुं बहिनोंनें बहुतसे वादियोंको वादमें जीते । ( इस अवसर में ) याज्ञवल्क्य परिव्राजक, तिनके साथ वाद करनेकों आया, आपसमें ऐसी प्रतिज्ञा करी ( कि ) जो हार जावै । वो जीतनेवालेकी सेवा करें। ( तब ) याज्ञवल्क्यनें, सुलसाकों बादमें जीतके, अपनी सेवा करनेवाली बनाई || सुलसाभी रात दिन याज्ञवल्क्यकी सेवा करनें लगी। ( अरु ) दोनुं युवान थे, इससे कामातुर होके, आपसमें भोगविलास करनें लग गए । ( सच्च है) कि अनिकेपास, घी रहनेंसें पिघलैईगा ( तथा ) घी, घास फूस, मिलनेंसें, अग्नि वधैईगा ( निदान ) दोनुं काम क्रीडामें मग्न होकर, काशपुरीके निकट, कुटीमें वास
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