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करवा दीया । तथा भोजन प्रमुख सर्व भरतमहाराजकीतरे देते रहे (जब ) सूर्यजशाका बेटा, महा यश, गद्दीपर बेठा ( तब ) तिसने रूपेके जिनोपवीत बनवा दीया । आगे तिनके संतानोंने पंचरंगे रेशमी पट्टसूत्रमय जिनोपवीत बनाते रहे। इस पीछे सादे सूतके बनाये गये । यह जिनोपवीतकी उत्पत्ति कही।
॥ अब चार वेदोंकी उत्पत्ति लिखते हैं॥ जब भरतजीनें, ब्राह्मणोकू बहुतसा मान्या पूज्या (तब ) दूसरे भी लोक ब्राह्मणाकू दानादिक देने लगे (और ) धर्मकृत्य सर्व उनीकेपास सीखनें लगे । तथा कराने लगे (तब ) भरत चक्रवर्तिने, ऋषभदेवस्वामी के वचनानुसारे, तिन ब्राह्मणूंके, स्वाध्याय करनेकेवास्ते, श्री भगवान् ऋषभ देवस्वामीकी स्तवनागर्भित, (और) पूजा, प्रतिष्ठादि, श्रावक धर्मका, संपूर्ण स्वरूप गर्भित, ८ कर्म, ७ नय, ४ निक्षेपा, ९ तत्व, क्षेत्र प्रमाणादिक गर्भित, बहुत मंत्रयुक्त ४ वेद रचे (तिनके यह नाम ) १ संसार दर्शन वेद । २ संस्थापना परामर्शन वेद । ३ तत्वावबोधन वेद । ४ विद्या प्रबोध वेद । इन च्यारोंमें, सर्व नय वस्तूके कथन संयुक्त तिन ब्राह्मणांकों पढाये । भरत के ८ पाटतक तो, ब्राह्मणोंकी भक्ति भरतजीकी तरे करते रहे । (पीछे ) प्रजा भी ब्राह्मणांकों भोजन कराने लगी ( तबसें ) सर्व जगे ब्राह्मण पूजनीक समजे गये । इस पीछे (आठमा) तीर्थकर, श्री चंद्रप्रभ स्वामीके वखततक, सर्व ब्राह्मण जैनधर्मी श्रावक रहे ( अरु ) सुविधि भगवान्के पीछे, कितनाक काल व्यतीतभये, इस भरतखंडमें,
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