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( इससेती ) हूं संसारमें मग्न होयरह्यो हूं। मेरे भाइयादिक सर्व धन्य है । जिनोनें राज्य छोडके चारित्र ग्रहण कीया है । इत्यादिक धर्मकी वार्ता स्मरण करनेसें, दिलमें वैराग्य उत्पन्न होता था ( और ) वृद्ध श्रावक, वेरवेर, माहन माहन, पूर्वोक्त वचन कहनेसैं, लोक सर्व, उन वृद्धश्रावकांकू, माहन ऐसे नामसे कहने लगे ( तबसें ) यह जैनी ब्राह्मण उत्पन्न भए । प्राकृत भाषामें ब्राह्मणकुं माहन नामसें लिखा है। प्राकृत व्याकरणसें, ब्राह्मण शब्द, बंभण ( अरु ) माहन, इस दोय नामसे सिद्ध होता है। ऐसे श्रावक माहन भोजन करनेवाले, दिन २ बहुतवधे । तब रसोईदार भरतजीकुं कहा । कि इनोंमें श्रावककी, वा अन्य पुरुपकी, क्या मालम पडे । तब जितने श्रावक थे। उनकुं बुलायके सर्वकी परीक्षा करी । श्रावक जानके भरतजीनें उनोंके शरीरमें, कांकणी रत्नसें तीन २ रेखाका चिन्ह कीया ( इससे ) जिनोपवीत धारनकी रीति प्रशिद्ध भई ॥ ( पीछे ) भरतजीका बेटा सूर्ययशा हुवा । जिसके संतानवाले, भरतक्षेत्रमें, सूर्यवंशी कहे जाते हैं (अरु ) बाहुबलीका बडा पुत्र, चंद्रयशा था (तिसके) संतानवाले, चंद्रवंशी कहे जाते हैं । श्रीऋषभदेवजीके कुरुनामे पुत्रके संतानवाले सर्व कुरुवंशी कहे जाते हैं । (जिनमें ) कौरव, पांडव हुये हैं (जब ) भरतका बेटा. सूर्ययशा सिंहासनपर बेठा था। तब तिसकेपास कांकणी रत्न नहिं था ( क्यों कि ) कांकणीरत्न चक्रवर्ति शिवाय और किसीकेपास नहिं होता है। (इसवास्ते) सूर्ययशा राजानें, ब्राह्मण श्रावकांके गलेमें, सुवर्णमय जिनोपवीत
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