________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२६
धुंभ बनाके, धर्मचक्र तीर्थ स्थापितकरा । (यह ) धर्मचक्र तीर्थ विक्रम राजाके राज्यतक तो रहा ( पीछे ) म्लेच्छादिकके बहुत से प्रचारसें, धर्मचक्र तीर्थ, ऐसा नाम तो नष्ट भया ( और ) यवन लोकोंने उसका नाम, मक्का, ऐसा प्रसिद्ध करा (और) अवलसें तो यवनादिकभी, मद्यमांसादिक अभक्ष नहिं खाते थे । यवनोंके मतभी, नसादिक अभक्ष खाना नहि कहा है ( तथापि ) जो के खाते है । सो धर्मसें विरुद्ध है | और श्री ऋषभदेव स्वामी । जिन २ देशोंमे विचरे । वहांका लोकतो प्रायें सरलस्वभावी दयावंत हुवे (और) भगवान् जिनदेशोंमे न गए ( अरु ) जिनूंनें भगवान के दर्शन नहिं करे ( वो ) सर्व म्लेच्छ, अनार्य, निर्दयी, हो गए । अनेक अपनी कल्पनाके मत मानने लगे । उनका व्यवहार औरतरहका हो गया ॥
( इस कारण से ) सर्व वरणोंका ( तथा ) सर्व मत मतांतरका ( तथा ) सर्व वैद्यक, ज्योतिष, मंत्र, तंत्रादिक, संपूर्ण कलाकौशल्यका मूल उत्पत्तिकारण, श्रीऋषभदेवखामी भए ॥ ( जब ) श्री ऋषभदेव स्वामीकुं चारित्र लियेवाद, १ हजार वर्ष व्यतीत भए ( तब ) विहार करके विनीता नगरीके पुरिमताल नामा वागमें आये ( जिसकुं ) इस्समय प्रयागजी कहते है ( उहां ) वड वृक्षके नीचे, तेलेकी तपस्यायुक्त, मिति फाल्गुन वदि ११ के दिन, प्रथम प्रहरमें, संपूर्ण लोकालोकप्रकाशक, केवलग्यान, केवलदर्शन, उत्पन्न हुवा (उसीवखत ) ६४ इंद्र । भुवनपति, व्यंतर, ज्योतिपी, वैमानिकके देवगण, सर्व आय के समवसरनकी रचना करी ॥
For Private And Personal Use Only