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Achar
रफ, प्रदक्षिणाभूत फिरते हुवे, नमस्तीर्थाय, ऐसा वचन बोलके पूर्वाभिमुख बैठे (शेष) तीन दिशाके सिंहासनपर, भगवान्के समान, प्रतिबिंब व्यंतर इंद्र, स्थापित करे ( परंतु) भगवानके अतिशयसें (और) देवानुभावसें चारे दिशासें आनेवाले लोकोंकू, साक्षात् ऋषभदेव स्वामी, सन्मुख बैठे, उपदेश देते मालुमहूवे (जब) चार मुखसें धर्मोपदेश देते देखके, लोकोंने ऋषभदेव स्वामीकुं, चतुर्मुख ब्रह्मा, ऐसे नामसें केनें लगे (धनंजयकोशमेंभी, ऋषभदेव खामीका नाम ब्रह्मा लिखा है) जबीसें भगवानका नाम, ब्रह्मा प्रसिद्ध हुवा ॥
(जब) श्री ऋषभदेव स्वामीने केवल ज्ञान उत्पन्न हुवा सुना (तब ) भरत चक्रवर्ति राजा परिवार सहित, वंदन नमस्कार करनेकुं, और धर्मोपदेश सुणनेकू, आते, रस्तेमें हाथीपर बैठी हुई, मरुदेवी माता, समवसरण, छत्र चामरादि, अपने पुत्रका अतिशय देखतेही शुद्ध भावसें केवल ज्ञान पायके, मोक्षकुं प्राप्त भई (तब) भरत राजा, हर्ष शोच सहित समवसरणमें आया । वहां भगवा. न्के मुखसें धर्मोपदेश सुनके, भरत राजाके ५०० पुत्र, और ७०० पोतूंने दीक्षा ग्रहण करी (तथा) ऋषभ देव स्वामीकी पुत्री, ब्राह्मी प्रमुख, अनेक स्त्रीयोंने दीक्षा ग्रहण करी (इनूंमे) भरत राजाके, वडे पुत्रका नाम, ऋषभसेन पुंडरीक था (वो) भगवानके प्रथम गणधर ऊवा (यह ) पुंडरीक गणधर, शत्रुजय पर्वतउपर अंतमें मोक्षगया (इससें) शत्रुजय तीर्थका नाम पुंडरीक गिरि प्रसिद्ध भया ( इसी मुजब ) शत्रुजय तीर्थके अनेक नाम हुये (बोहोतसे)
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