________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
करने लगे (और ) विवाहका विधि, सर्व आदिराजाके विवाहसमें, इंद्र, इंद्राणियोने करा था। उसीमुजब करने लगे ॥ श्री आदिराजाने बहुत कालतक राज्य किया । संपूर्ण राज्यनीतीसें, प्रजाके अर्थ, सबतरेके सुख उत्पन्न किये। (इस हेतुसें ) श्रीऋपभदेव स्वामीकों सर्व जगस्थितिका कर्ता, जैनी लोक मानते हैं (दूसरे मतवाले ) जो ईश्वरकी करी सृष्टी मानतेहैं । ( वेभी) ईश्वर, आदीश्वर, जगदीश्वर, योगीश्वर, जगत्का कर्ता, ब्रह्मा आदि, विष्णु आदि, योगी आदि, भगवान् आदि अर्हत, आदि तीर्थकर, प्रथम बुद्ध, महादेव ( इत्यादि ) जो नाम ओर महिमा गाते हैं ( वे सर्व ) श्री ऋषभदेवजीकेही गुणानुवाद हैं (और ) कोई सृष्टीका की नहीं है ॥ सर्व जगत्का व्यवहार चलाकर शेषमें भरतपुत्रकुं, विनीता नगरीका राज्य दीया ॥ बाहुबली पुत्रकुं, तक्षशिला नगरीका राज्य दीया ॥ शेष ९८ पुत्रोंको उनोंके नामसें, जूदे २ देश वसायके राज्य दीये ( जबसें ) अंग, बंग, कलिंगादि देशोंके नाम प्रसिद्ध हुवे । ( और ) सर्व गोत्रियोंकुंभी, यथायोग्य आजीविकाके विभाग कर दिये ( इससमें ) नव लोकांतिक देवताने भगवानकुं दीक्षाका अवसर जनाया । भगवान आप अपणे ज्ञानसें दीक्षाका अवसर जानते हैं (तथापि ) लोकांतिक देवोंका यहहीज जीत व्यवहार है ( पीछे ) संवत्सरी दान देके, चैत्र वदि ८ के दिन, मच्छ, कच्छ, प्रमुख ४ हजार सामंत पुरु. पोकेसाथ दीक्षा ग्रहण करी । दीक्षाका महोत्सव सर्व, ६४ इंद्रोंने मिलके करा ( तब ) भगवानकुं चोथा मनपर्यव ज्ञान उत्पन्न
For Private And Personal Use Only