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आभरण सहित, रत्नजडित सिंहासनपर बेठे हैं । उस्समय, वे युगल लोक, कमलके पत्तोंमें जल लेके आये । ( वहां ) वस्त्राभरण सहित सिंहासनपर बेठे देखके अंगूठेपर जलाभिषेक किया ( तब ) इंद्र विचारा ( कि ) यह युगल लोक बडे विनयवान है । ऐसा जानके वैश्रमण नामा देवकुं आज्ञादीवी ( कि ) आदिराजाके ( तथा ) इस विनीत पुरुषोंके, रहनेके योग्य, विनीता नामसें, १ नगरी स्थापित करो ( तब ) वैश्रमण देवनें, गढ, मढ, झोल, प्राकारादिक, संयुक्त, वर्णन योग्य, १२ योजन, ४८ कोसमें लंबी ९ योजन चवडी नगरी बसाई । जिसके मध्य भागमें २१ भूमिकाका मकान श्रीआदि राजाके रहने योग्य बनाया (और) सर्व भाई बेटांके योग्य, सात सात भूमिये मकान (और) दूसरों के योग्य, तीन २ भूमिये मकान बनाये । इसका विस्तार संबंध, सेतुंज महात्म्य जाण लेना (अब) आदि राजा, चतुरंगिणी सेनाकेवास्ते प्रथमोहो । हाथी, घोडे, गाय, शे, प्रमुख, उपयोगी जानवरोंकुं, वनसें मंगायके संग्रह करे (और) च्यार वंशकी स्थापना करी । उग्र १ । भोग २ । राजन्य ३ | क्षत्रिय ४ । जिसकुं कोटवालकी पदवी दीवी (सो) उग्र दंडके करनेसें, उग्रवंशी कहलाये १ ( तथा ) जिसकुं आदि राजानें, गुरुतुल्य वडे करके माने, तिससे वो भोगवंशी कहलाए २ ( तथा ) आदि राजाके, स्वजनसंबंधि मित्रादिकके, राजन्य वंश कहलाए ३ (और) प्रजागण के सर्व क्षत्री वंश कहलाए ४ ( अब युगलियोंके आहारकी विधि कहते हैं ) हीन कालके प्रभावसें, कल्पवृक्ष २ दत्तसूरि०
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