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नेक सर्व विधि बताया। जिसके हाथसे मट्टी मंगाई । और हांडी पकवाई (जिससे ) कुंभकार कर्म प्रगट हुवा | इससेती कुंभकारकुं, प्रजापति (तथा) पर्याप्त कहते हैं ( फेर ) सनें सनं, सर्व आहार पका खानेका विधि प्रगट हो गया ( औरभी) संपूर्ण कर्म, कला मात्र, अपना पुत्रादिक प्रजा गणकुं बताई । आदि राजाके उपदेशसें, पांच मूल शिल्प ( अर्थात् ) कारीगर बने । कुंभकार १ | लोहकार २ | चित्रकार ३ | तंतुकार वस्त्र वणवाले ४ | नापित ५ । ( इस ) एकेक शिल्पका, अवांतर २० वीस भेद रहें हैं । ( इससे ) सब मिलके १०० भेद शिल्पके प्रसिद्ध हवे ( तथा ) कर्षण कर्म, खेती आदिक करणा । ( तथा ) वाणिज्य कर्म, व्यापारादिक करनेकी रीति, तिससे धन उपार्जन करणा । धनका ममत्व करना । धनकों शुभ क्षेत्रादिकमें लगाना ( इत्यादि) संपूर्ण जगत प्रसिद्ध कर्म बताये । ( प्रथम ) मट्टी के संचयोंमें, अहरण हथोडी प्रमुख बनाये ( पीछे ) उससे उपयोगी काम लायक सर्व वस्तु बनाई गई || ( और ) भरतादि प्रजा atarat बहत्तर कला सिखलाई ( तथा ) स्त्रियोंकों चोसठ कला सिखलाई ( इन सर्व कलाके नाममात्र लिखते हैं ) ॥
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॥ पुरुषोंकी ७२ कलाका नाम ॥
१ लिखनेकी कला । २ पढनेकी कला । ३ गणितकला | ४ गीतकला | ५ नृत्य । ६ ताल बजाना । ७ पटह बजाना । ८ मृदंग बजाना । ९ वीणा बजाना । १० वंशपरीक्षा । ११ भेरीपरीक्षा । १२ गजशिक्षा । १३ तुरंगशिक्षा । १४ धातु
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