Book Title: Dravya Gun Paryayno Ras Dravyanuyog Paramarsh Part 05
Author(s): Yashovijay
Publisher: Shreyaskar Andheri Gujarati Jain Sangh
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• विषयमाहा.
___25
વિષય
વિષય
પૃષ્ઠ
उपचारतत्पमापना
(म. ....................१९१७
१९१८
१९
१९१९
नवमस्वभावनिरूपणम् ......
....१९०२ | एकपञ्चाशद् ज्ञातृविशेषणानि ........................१९१६ भेन्ते अशुद्ध मात्मानो मोक्ष प्रसंभव ......... १९०२
| 'गौर्वाहीकः' वाक्यमीमांसा ............................१९१७ सर्वथा अशुद्ध qभ शुद्ध शाननो मनुध्य .......१९०२ उपयरितस्वभावनामे ......... आत्मा शुद्धाऽशुद्धोभयस्वभावी .......................१९०३ | 'गौः वाहीकः' - वायनी विया२५॥ ............. १९१७ शुद्धात्मामा ५ असंभव..
१९०३ गौणी सारोपा लक्षणा વ્યવહાર-નિશ્ચયથી આત્મા બદ્ધ-અબદ્ધ ,
તર્કપ્રકાશકારમતનો વિચાર ........ १९१८ वेदान्तिमतनिराकरणम् .
કાવ્યપ્રકાશકારના મતનું પ્રદર્શન .
...............
१९१८ शुद्ध-अशुद्ध उभयस्वभावी सामा.............
........ १९०४ | | मना मतनु माविष्ठ२५॥ ... १९१८ अशुद्धस्वभावतः संसारः ......... ...........१९०५ | आरोपितमूर्त्तत्वेन आत्मबोधः .................... अशुद्धस्वभावथा अभबंध .......
१९०५
नाणेशमना मतनुं प्रगटी४२५॥ ................ बलिवपरिमनजीओ ...... ........ १९०५
४गनाथमतनो पश्यिय ........................१९१९ शुद्धस्वभावाऽऽभिमुख्योपदेशः ...............
.............१९०६
रसगङ्गाधरदर्शितनव्यमतद्योतनम् ...................१९२० यो व्यवहारमा सूतेसा, मात्मामiत .... १९०६ बाधनिश्चयप्रतिबध्यता टिनी विद्यार। .........१९२० शुद्धात्मज्ञानात् शुद्धात्माऽऽविर्भावः ...................१९०७ | पञ्चमतोपसंहारः ...........
...........१९२१ दशमविशेषस्वभावप्रतिपादनम् ...........
५iय विभिन्न अभिप्रायन तावतने समय....१९२१ (उपयरितस्वभावनी सम४९ ........ ......... १९०८ | સંસારી જીવમાં મૂર્તત્વ માન્ય ..........१९२१ उपचरितस्वभावं विना परज्ञानाऽसम्भवः ...........१९०९ | परज्ञताादक सिद्ध सहजापचारतम् .................१९२२ ५२शातत्व औपयार........ ........ १९०९ शून्य मात्मामi शाननी असंभव............ १९२२ शानभां स्व त्व ५९छ ...... ......... १९०९
सड४ उपयरितस्वमावनी परियय ..............१९२२ ज्ञाने परविषयता औपचारिकी ......... ...........१९१०
अकर्मणो व्यवहाराऽभावः..............................१९२३ ५२विषयता ५२सापेक्ष ............... .........१९१०
अष्टभन्य उपाधिसोनी मोगा ............१९२३ मात्मभिन्न पार्थमा शान औपयारि... ...... १९१०
नयमतभेदेन आत्मनि स्व-परज्ञताविमर्शः ..........१९२४ इन्द्रियादौ ज्ञानवत्त्वम् औपचारिकम् ....१९११ मात्मा निश्चयथा स्वात, व्यवहारथी ५२शाता .. १९२४ આત્મા જ્ઞાનમય છે
........१९११ । थंयित् ७५यरित-अनुपयरित स्वभावनो स्वी॥२. १९२४ शानमा स्व शत्व अनुपयरित.......
एकान्तनिश्चय-व्यवहाराभ्युपगमे बाधोपदर्शनम् ... १९२५ ज्ञानसामर्थ्य-स्वभावपरिचयः ...........................
| मने आन्तव्यवस्था ५४२५॥नो संहन .............. १९२५ व्यवहार-निश्चयसंमत थन ............ ...... १९१२ |
५२शत्व सिद्धनो स्वाभावि परितस्वभाव.....१९२५ ज्ञेयाकारप्रतिभास उपचारनिबन्धनम् ..... ......१९१३ आत्मनि सोपचार-निरुपचारस्वभावता .............१९२६ જ્ઞાનમાં પરપ્રતિભાસને ગૌણ બનાવીએ .. ........ १९१३ | દ્વાáિશિકાવૃત્તિનો સંદર્ભ..
........ १९२६ ज्ञातुः ज्ञानात्मता मुक्तिः ...............................१९१४ नवी [मो मे न शो ................. १९२६ જ્ઞાન સિવાયના પરિણામોની ઉપેક્ષા કરીએ .......१९१४ अन्तरङ्गसाधनापरायणतया भाव्यम् ..............१९२७ असङ्गदशोपायोपदर्शनम् ..........................१९१५
રાગ રાગમાં વસે, જ્ઞાન જ્ઞાનમાં વસે. .....१९२७ ઉપચાર વખતે જાગૃતિ કેળવીએ ............... १९१५ | दर्पणकल्पं ज्ञानम् .
........१९२८
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