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गुण है। महामातृश्री भी त्यागशील हैं। आप भी ऐसी ही हैं। पट्टमहादेवीजो तो आशा-आकांक्षाओं से जैसे परे ही हैं। उनकी यही इच्छा है कि अपनी आँखों के सान सो-खेलो घाम सु । कन्लालदेव जी वर्धन्ती के अवसर पर आप अवश्य आएँगी ही-इस आशा से आपकी प्रतीक्षा करती रहीं। आप नहीं आयीं। आपके न आने पर वे कितनी परेशान हुई, सो मैं ही जानता हूँ।''
"हाँ, तो, हेग्गड़े दम्पती कहाँ हैं? कहीं दिखे ही नहीं।"
"हेग्गड़ेजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। अब कुछ सुधर रहा है। उनके आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
"पट्टमहादेवी नहीं गयी?" ।
"नहीं, महामातश्री को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी-उन्होंने स्पष्ट कह दिया। खुद सन्निधान ने ही हो आने के लिए कहा कि यहाँ इतने लोग मौजूद हैं, हो आओ तो अच्छा रहे। वे गयीं ही नहीं।"
"फिलहाल यहाँ की ज्या खबर है?" "रोज खबर मिलती रहती है। हेग्गड़ेजी का स्वास्थ्य दिन-ब-दिन सुधर
"हाय, हाय! पट्टमहादेवी को यह कैसी सन्दिग्ध स्थिति हो गयी! दुनिया भर की सभी बातें तो मायण ने कहीं। यह समाचार क्यों नहीं बताया?"
"हेग्गड़ेजी की बात आयी तो मैंने कहा। नहीं तो मैं भी नहीं कहता शायद। वे अच्छे होकर आ जाएँ तो कितना अच्छा हो!"
"वहाँ, उनका उपचार कौन कर रहा है? देखभाल कौन कर रहे हैं?"
"मैं नहीं जानता। मैंने सुना है कि हेगड़ेजी कभी वैद्य जी के पास नहीं गये, न वैद्य को पास बुलाया हो। उनका स्वास्थ्य ही ऐसा है। मन में किसी तरह का मैल न रखकर निष्ठा के साथ मेहनत करनेवालों का स्वास्थ्य कभी नहीं बिगड़ता। कोई चिन्ता भुनगे की तरह मस्तिष्क में घुसी कि बस गड़बड़ी हुई। बीमारी के लिए वह एक अच्छा सहारा बन जाती है। शायद प्रधानजी के वैद्यजी उनकी देख-रेख करते होंगे।"
"ओह, वे गुणराशि पण्डितजी, मैं जानती हूँ। हमारे भी परिवार के वैद्यजी वे ही रहे हैं। वे हों तो कोई चिन्ता की बात ही नहीं। उनमें एक गुण और है। अगर उन्हें यह विश्वास हो जाय कि यह बीमारी हमसे सुधरेगी नहीं तो वे छिपाएंगे नहीं, स्पष्ट कह देते हैं कि हमसे अच्छे जानकार को बुलवा लें।"
"वह अच्छा गुण है। अपनी कम जानकारी के कारण बीमारी की चिकित्सा को रोकना नहीं चाहिए।"
चट्टला अन्दर आयी। पण्डितजी यह कहते हुए 'पट्टमहादेवी आ गयीं' उठ खड़े हुए।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 39