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ममता-समता-परिणति पर आधारित हैं। सो तमने सुनाया ..... : ....:.:.....::.:::..:... सुन लिया इसने यह धार्मिक - मथन है, माँ !
चेतन की इस स्रजन-शीलता का भान किसे है ? चेतन की इस द्रवण-शीलता का ज्ञान किसे है ? इसकी चर्चा भी कौन करता है रुचि से ? कौन सुनता है मति से ?
और
इसकी अर्चा के लिए किसके पास समय है ? आस्था से रीता जीवन
यह चार्मिक वतन है, माँ !" 'वाह ! धन्यवाद बेटा ! मेरे आशय, मेरे भाव भीतर"तुम तक उतर गए। अब मुझे कोई चिन्ता नहीं !
और कल के प्रभात से
अपनी यात्रा का
सूत्र-पात करना है तुम्हें ! प्रभात में कुम्भकार आएगा पतित से पावन बनने,
16 :: मूक माटी