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बाहरी दृष्टि से और
बाहरी सृष्टि से
अछूता सा कुछ
भीतरी जगत् को
कुछ झलका-सा अनुभूत हुआ, माँ !
छूता सा लगा अपूर्व अश्रुतपूर्व
यह मार्मिक कथन है, माँ !
स्व-पर कारणवश
विश्लेषण होना, वे दोनों कार्य आत्मा की ही
प्रकृति और पुरुष के सम्मिलन से
विकृति और कलुष के ""संकुलन से
भीतर ही भीतर
सूक्ष्म-तम
तीसरी वस्तु की जो रचना होती है,
दूरदर्शक यन्त्र से
दृष्ट नहीं होती समीचीन दूर-दृष्टि में उतर कर आती है यह कार्मिक व्यथन है, माँ !
कर्मों का संश्लेषण होना, आत्मा से फिर उनका
मूक माटी : 15