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किसी कार्य को सम्पन्न करते समय . :: ... अनुजा की जटीमा हान.....: .:: ..
सही पुरुषार्थ नहीं है, कारण कि वह सब कुछ अभी राग की भूमिका में ही घट रहा है,
और इससे गति में शिथिलता आती है। इसी भाँति प्रतिकूलता का प्रतिकार करना भी प्रकारान्तर से द्वेष को आहूत करना है,
और इससे
मति में कलिलता आती है। कभी-कभी गति या प्रगति के अभाव में आशा के पद ठण्डे पड़ते हैं, धृति, साहस, उत्साह भी आह भरते हैं, मन खिन्न होता है किन्तु यह सब आस्थावान् पुरुष को अभिशाप नहीं है, वरन् वरदान ही सिद्ध होते हैं जो वमी, दमी हरदम उद्यमी है।
और, सुनो ! मीठे दही से ही नहीं, खट्टे से भी
मूक माटी :: 13