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(२४)
मेघमोहदय
शुक्रार नतो देशेषु वर्षजानं यथा---
सुरगणे भृगुजास्तगतिर्यदा, हवसगुर्जरमालयमण्डले । भवति देशभयं नृपविग्रहः,प्रथमतोऽपि च धान्यमहर्घता॥१२४॥ पश्चात् समर्घता किश्चिन्मासमेकं प्रवर्तते ।
खुरसाने महोत्पातो द्रव्यनाशोऽतिदण्डतः ॥ १२ ॥ प्रयला जलवृष्टिश्च मासषटकात् परं भवेत । हेमरूप्यमहार्घत्वं निद्रालुः सकलो जनः ॥ १२६॥ मरुस्थलेषु दुर्भिक्षं दिल्लयां राज ववर्तनम् । गोपालगिरिदेशे स्यान्मरको नरकोपमः ॥ १२७ ।। खरे हरमजेऽपि व्यापारः कोऽपि नो भवेत् । भृगुकच्छेऽथ चम्पायां धूलिपातश्च शून्यता ।। १२८ ।। रोगबाहुल्यमथवा परचक्रपराभवः । व्यापारे बहुला लक्ष्मीः सुभिक्षमुत्तरापथे ।। १५९ ॥
यदि देवगण के नक्षत्र में शुक्र का अस्त हो तो हबशी गुर्जर मालवा इन देशों में भय और गजविग्रह हों प्रथम से धान्य महँगा हो ॥१२४॥ पीछे एक मास तक सस्ते विकें । खुरासान में उत्पात, द्रव्य का नाश और दंड बहुत हों ॥ १२५ ।। छ: मास पीछे बहुत जलवर्षा हो , सोना चांदी तेज हों और मनुष्यों में आलस्य अधिक हो ।। १२६ !! मरुस्थल ( मारवाड ) देश में दुर्भिक्ष, दिल्ली में राज्यपरिवर्तन, गोपालगिरिदेश में महामारी( प्लेग)हो ।। १२७॥ खर्पर,हरमज देश में कोई व्यापार भी नहीं हो, भृगुकच्छ ( भरूच ) और चंपानगरी में धुल की वृष्टी और शून्यता हो ॥ १२८ ॥ उत्तर दिशा में बहुत रोग हो या शत्रु का पगभव हो, व्यापार में बहुत लक्ष्मी की प्राप्ति हो और मुभिक्ष सुकाल हो ॥ १२६ ॥
"Aho Shrutgyanam"