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मेघमहोदये
सम्मुखे दक्षिणे पृष्ठे वामपार्श्व यदा ग्रहाः । तदा तदा पृथग भावो ज्ञातव्यश्च मनीषिभिः ॥११२।। सम्मुखे च रवौ हानिः सोमे राज्ञां सुखं भवेत्। भौमे भूपस्य लोकानां वह्निजातं भयं भवेत् ॥११३॥ बुधे धर्मरतो राजा प्रजादुःखं महाभयम् । गुरुणा बद्धते कोशः प्रजाः सर्वान्नपूरिताः ॥११४॥ शुक्रे भूपप्रजावृद्धिजिलोकः सुखी भवेत् । शनौ चतुष्पदे पीडा प्रजा दुर्भिक्षपीडिता ॥११॥ राहौ च नियते राजा प्रजा च क्रमपीडिता । केतौ शरीरदुःखं च प्रजा देशात प्रवासिता ॥११६॥इति ॥ अथ भगुसुतोदयतो देशेषु वर्षज्ञानं यथा ---- भृगुसुतः कुरुतेऽभ्युदयं यदा, सुरगणक्षगतः खलु सिन्धुषु । सकलगुर्जरकबटमण्डले, भवति सस्थविनाशमहारुजे।।११७१ भाव विद्वानों को जानना चाहिये ॥११२॥ संमुख रवि हो तो हानि, सोम हो तो राजा को सुख, मंगल हो तो राजा तथा प्रजा को अग्नि का भय हो ॥११३॥ बुध हो तो राजा धर्म में तत्पर हो और प्रजा को दुःख, तथा महान् भय हो । गुरु हो तो खजाना की वृद्धि हो और प्रजा समस्त अन्नसे पूर्ण हो ॥११४।। शुक्र हो तो राजा और प्रजा की वृद्धि, तथा ब्राह्मण लोक सुखी हो, शनि हो तो पशुओं को पीडा और प्रजा दुर्भिक्ष से दुःखी हो ॥१५॥ राहु हो तो राजा का मरण, प्रजा दुःखी, केतु हो तो शरीर को दुःख और प्रजा अपने देश से प्रवास करे याने परदेश जाय । ११६। ___ यदि शुक्रका उदय देवगणे के नक्षत्र में हो तो सिंधु गुजरात कर्बट देशों में खेती का नाश और महारोग हों ।।११।। जालन्धरमें दुर्भिक्ष
१ देवगण-- अशिवनी, मुगशिर, रेवति, हस्त, पुष्य, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण मौर स्वाति ।
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