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कर्पूरचक्रम्
(२१) जीववासे बहुक्षीरा धेनवी मेघसम्भवः । प्रजानां भूपतेः सौख्यं सस्योत्पत्तिस्तु भूयसी ॥ १०५ ॥ शुक्रवासे सुखी राजा धर्मी लोको धनागमः । प्रजारोग्यं महालाभः पुत्रोत्पत्तिजया नृणाम् ॥ १०६ ॥ सौरिवासे नृपध्वंस उपलिङ्गाजनक्षयः। दुर्भिक्षं सभया विप्रा धर्महानिः कुतः सुखम् ॥ १०७॥ राहुवासे प्रजापीडा भूपयुद्धं महाभयम् । वहिचौरभयं दुःखं राज्ञां मृत्युः प्रजायते ॥ १०८ ॥ केतुवासे सवेनाशः स्थानभ्रष्टा जनाः किल । गृहे गृहे महद्वैरं देशभङ्गः क्रमाद् भवेत् ॥ १०९ ।। चतुर्दिक्षु स्थिताः खेटास्तत्र ज्ञेयं शुभाशुभम् । पूर्वादिक्रमता ज्ञेया वर्षराजादयः किल ॥ ११० ॥ सौरिभौमस्तथा राहुर्बुधः केतुश्च गहिशि । तत्र भङ्गो भवेद्धानिः सौम्येषु सुखसम्पदः ॥ १११ ॥ धान्य प्राप्ति हो ॥ १०५ ॥ शुक्रफल जामुखी, लोक धर्मी, धन प्राप्ति, प्रजा आरोग्य, महान् लाभ, पुत्रोत्पत्ति अधिक, और राजाओं का ज हो ।। १०६ ।। शनिफन्ट .... गजा का विनाश, प.ग्वंडियों से मनुष्यों का विनाश, दुर्भिक्ष, ब्राह्मणों को मय, धर्म की हानि होनेम सुख भी नहीं ॥ १०७ ।। गहुफल ---- प्रजा को पीडा, गजा का युद्ध, महान भय, अग्नि और चोर का भय, दुःख और जागा का परण हो ।।१०८|| केतुफल ... ---समस्त विनाश, लोग स्थान भ्र, घर पर अधिक द्वेश औः क्रमस देशभंग हो ।।१०।। पूर्वादिक्रममें चारों ही दिशा में रहे हुए वर्ष के राजा के जो रवि आदि ग्रह हैं, उनसे शुभाशुभ जानना ॥११०॥ शनि मंगल राहु बुध और केतु जिस दिशा में हो वहां हानि हो, और सौम्यग्रह हो तो सुख संपति हो ||१११॥ संमुख दक्षिण पीछाड़ी और बॉयी तरफ रहे हुए ग्रहों के पृथक् २
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