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और नीतिशास्त्र Ethics को समावेश भी द्रव्यानुयोगमें होता है। वस्तुस्वभावशास्त्र यह हमारा सच्चा द्रव्यानुयोग है। बाह्य वस्तु और आत्मिक वस्तुओंका अरस्परस सम्बन्ध, एक दूसरेपर होनेवाली उसकी असर और उसका वास्तविक स्वरूप द्रव्यानुयोगमें बताया हुआ होता है । एक जीवका निगोदमेंसे निकल कर निति प्राप्त करने तक किस प्रकार विकास होता है, किन किन गतियोंमें कैसे कैसे वेश धारण करता है, कैसे कैसे प्राणियोंके विचित्र प्रका. रके सम्बन्धमें आता है और इस सब वेश और सम्बन्धका वास्तविक कारण क्या है, कर्म और पुरुषार्थ में परस्पर क्या सम्बन्ध है यह सब बाते द्रव्यानुयोग बतलाता है। व्यवहारनीतिका विषय इस ही अनुयोगमें आता है । इससे मालूम होगा कि द्रव्यानुयोग शब्द बहुत विशाल है और उसमें अनेकों विषयोंका समावेश होता है।
द्रव्यानुयोगमें सम्मलित होनेवाले जिन विषयोंको हम देख चुके हैं उनमें एक बहुत अगत्यका विषय अध्यात्म शास्त्रका है।
'आत्मानमधिकृत्येत्यध्यात्मम् ' अथवा 'आत्मनीअध्यात्मका स्थान त्यध्यात्मम् ' आत्मा क्या है? कौन है ? उसका
विषय कैसा है ? उसका पौद्गलिक वस्तुओंके साथ क्या सम्बन्ध है? कैसा है? कितने समय तकका है ? उसके सगे-स्नेहियों, मित्रों और सम्बन्धियोंका योग किन कारणोंसे हुआ है और उन सबमें वस्तुस्वरूप यथास्थित क्या है? कैसा प्रतीत होता है ? खोटा स्वरूप सत्य जैसा प्रतीत होता है इसका क्या कारण है ? आत्माकी शुद्ध दशा कैसी है ? वैसी कब हुई ? नही होती तो कैसे प्राप्त हो सकती है ? उसके लिये कैसा पुरुषार्थ करना पड़ता है ? आत्मा और कर्मका सम्बन्ध कैसा है ? कब तकका है ? ये सब अध्यात्म ग्रन्थके मुख्य विषय हैं। इसके
सम्बन्धमें अनेक प्रकारको शिक्षायें, सदगुण ग्रहण अभ्यात्मके विषय करनेके प्रसंग, स्थान और कारण, कर्ममलको
दूर करनेके उपाय और वैराग्यवासित हृदय करनेके अनेक साधन अध्यात्मके विषयमें वर्णित होते हैं। भावनाका स्वरूप, भवकी पीड़ा, पौद्गलिक पदार्थोकी अस्थिरता, राग