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उनके पिता महाराजा दशरथ भी जब तक गृहाथ में रहे, श्रमणों (जैन साधुओं) को अहार' देते थे और जब जैन साधु हुये तो घोर तप करने लगे। और सती सीता जी भी जैन साधुका होगई थी। ___ यही कारण है कि भगवान महावीर की दृष्टि में श्री रामचन्द्र जो का जीवन-चरित्र पाप-रूपी अन्धेरे को दूर करने के लिये कभी मन्द न पड़ने वाले सूर्य के समान बताया:--
श्रीमद्रामचरित्रमत्त ममिदं नानाकथ परितम् । पापध्वान्तविनाशनकतरणि कार ण्यवल्लीवनम ॥ भव्यश्रणिमनःप्रमोदसदनं भक्त्यानघं कीर्तितम् । नानासत्पुरुषालिवेष्ठितयुतं पुण्यं शुभं पावनम् ॥ १८० ।। श्रीवर्धमानेन जिनेश्वरेण त्रैलोक्यवन्येन यदुक्तमादौ । ततः परं गौतमसंज्ञकेन गणेश्वरेण प्रथितं जनानां ॥ १८१ ॥
श्री जिनसेंनाचायः रामचरित्र अर्थात्-श्री गौतम गन्धर्व के शब्दों में तीन लोक के पूज्य श्री महावीर की दृष्टि में श्री रामचन्द्र जी का चरित्र परम सुन्दर, अति मनोहर, महा कल्याणकारी और पाप-रूपी अन्धेरे को दूर करने के लिये कभी मन्द न पड़ने वाला चमकता हुआ सूर्य है। अहिंसा रूपी जहाज़ को चलाने के लिये बल्ली के समान है। इसमें सीता सुग्रीव, हनुमान और वाली आदि अनेक महापुरुषों के कथन शामिल होने के कारण महापुण्यरूप है और सज्जन पुरुषों के हृदय को शुद्ध व पवित्र करने वाला है ।
१ से ४ 'महाराजा दशरथ की जिन-शासन प्रशंसा' पृ० ४६ । ५. For details see "Jainism and Karnataka | ulture". (Kar. ___nataka Historical Research Society, Dharwar) PP. 76-80.
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