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(४३) कामदेवके मदको नष्ट करने वाला रूपशाली यह बंगदेशका राजा है । अपार लक्ष्मीका स्वामी यह मालवदेशाधिपति है। यह प्रजापालक तथा अत्यन्त दयालु नेपालदेशका राजा है । प्रसिद्ध सद्गुणोंसे जो बहुत आदरणीय है ऐसा यह कुरुदेशका राजा है । शत्रुओंका समूल नष्ट करने वाला यह निषधदेशका राजा है । कीर्तिरूप चंदनवृक्षोंकी सुगन्धीसे साक्षात् मलयपर्वतके समान सुशोभित यह मलयदेशका राजा है"
इस भांति जब सखी समस्त राजाओंकी प्रशंसा कर चुकी तब जैसे इन्दुमतीने अजराजाको वरा वैसे ही हंसी तथा सारसी दोनोंने जितारि राजाके गलेमें वरमाला डाल दी। उस समय अन्य राजाओं के मनमें इच्छा, उत्सुकता, संशय, अहंकार, खद, लज्जा, पश्चाताप तथा अदृष्टि आदि मनोविकार प्रकट हुए । कितनेक समझदार राजाओंको आनन्द भी हुआ । किसी २ राजाको स्वयंवर पर, किसीको अपने आगमन पर किसीको अपने भाग्य पर तथा किसी २ को अपने मनुष्य भव पर अरुचि उत्पन्न हुई.
तदनन्तर राजा विजयदेवने शुभ दिन देखकर बडे समारोहके साथ जितारि राजाके साथ अपनी दोनों कन्याओंका विवाह किया, तथा बहुतसा द्रव्य, वाहन, सेना आदि देकर वरका यथोचित सत्कार किया।
दूसरे बडे २ राजा भी इस स्वयंवरमें निराश होगये इसका