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जाता है कि
नवरत्नों में
तात्यम् [अमर कि
अमनाक (अव्य०) [न० त०] थोड़ा नहीं, बहुत, | कुसुमसौरभसेवनसंपूर्णसकलकामस्य-भामि० १२८ अत्यधिक ।
2. =देव दारु 3. कल्पवृक्ष, -द्विजः देवल अमनुष्य (वि०) [ न० ब० ] 1. अमानुषिक, जो मनुष्यो- ब्राह्मण जो मंदिर या मूर्ति संबंधी कार्य करता हो, चित न हो 2. जहाँ मनुष्य का आना जाना बहुत कम मन्दिर का अधीक्षक,--पुरम्, देवताओं का आवा
हो, -व्यः | न० त०] 1 जो मनुष्य न हो, 2. राक्षस । सस्थान, दिव्य स्वर्ग,-पुष्पः,-पुष्पकः कल्पवृक्ष, अमन्त्र,-त्रक (वि०) [न० ब० कप च] 1. वैदिक मंत्रों -----प्रख्य,-प्रभ (वि.) देवताओं जैसा,--रत्नम
से रहित, वह संस्कार जिसमें वेदमंत्रों के पाठ की स्फटिक,---लोकः देवताओं की दुनियाँ, स्वर्ग, ता आवश्यकता न हो 2. जिसे वेद के पढ़ने का अधिकार स्वर्गीय सुख, ---तेषु सम्यग्वर्तमानो गच्छत्यमरलोकन हो जैसे शुद्र या स्त्री 3. जो वेदपाठ से अनभिज्ञ
ताम्-मनु० २।५,-सिंहः अमरकोश के रचयिता हो,-अवतानाममन्त्राणाम् –मन्०१२।११४, 4. रोग का नाम, वह जैन धर्मावलम्बी थे, कहा जाता है कि की वह चिकित्सा जिसमें जादुमंत्र की क्रिया न की विक्रमादित्य महाराज के नवरत्नों में एक रत्न थे। जाती हो, ... अनया कथमन्यथावलीढा न हि जीवन्ति अमरता-स्वम् [अमर+तल, त्वल वा] देवत्व। जना मनागमन्त्राः -भामि० १११११।
अमरावती [अमर + मतुप, दीर्घः] देवताओं का आवासस्थान, अमन्द (वि.) [न० त० | 1. जो सुस्त या मंद न हो,
इन्द्र का घर,-ससंभ्रमेन्द्रद्रुतपातितार्गला निमीलिताफुर्तीला, बुद्धिमान् 2. तेज, प्रबल, प्रचण्ड (वायु
क्षीव भियाऽमरावती । शिशु०।। आदि ) 3. अनल्प, अति, अधिक, बहुत, तीव, --अमन्द
अमर्त्य (वि०) [न० त०] जो मरणधर्मा न हो, दिव्य, मददिन-उत्तर० ५।५, अमन्दमिलदिन्दिरे निखिल
अविनाशी, भावेऽपि रघु० ७।५३, भुवनम्-स्वर्ग, भावरीमन्दिरे भामि०४।१।
°ता अविनश्वरता, --यः देवता, । सम-आपगा अमम (वि०) [न० ब० बिना अहंकार के, स्वार्थ या
देवनदी, गंगा की उपाधि--विक्रमांक० १८१०४। सांसारिक आसक्ति से शून्य, ममतारहित,-शरणेष्व- | अमर्मन् (नपुं०) [न० त०] शरीर का वह अंग जो मर्मममश्चैव वृक्षमलनिकेतन:-मनु० ६.२६ ।
स्थल न हो। सम-वेधिन मर्मस्थल को न बींधन अममता-त्वम् [न० त०] उदासीनता, स्वार्थराहित्य ।। वाला, मदु, कोमल। अमर (वि०) [न० त० म.---पचाद्यच् ] जो कभी मृत्यु
अमर्याद (वि.) [ न० ब० ] 1. उचित सीमाओं को पार को प्राप्त न हो, न मरने वाला, अविनाशी,---अजरा
करने वाला, सीमा को उल्लंघन करने वाला, अनादर मरवत्प्राज्ञो विद्यामर्थं च गाधयेत् हि, पंच०३,
करन वाला, अनुचित,-मर्यादायाममर्यादाः स्त्रियस्तिमनु० २१४८, र: 1. देव, देवता 2. पारा 3.
प्ठन्ति सर्वदा-पंच० १११४२, तादशं त्वममर्यादं कर्म सोना 4. नंतीस की संख्या (क्योंकि गिनती में इतने
कर्तुं चिकीर्षसि -रामा०, 2. सीमारहित, असीम-दा ही देवता है) 5. अमरसिंह 6. हड्डियों का ढेर-रा
| न० त०] उचित सीमा का उल्लंघन करना, 1. इन्द्र का आवासस्थान (तु० अमरावती) 2. नाल
आचरणहीनता, अप्रतिष्ठा, उचित सम्मान की 3. योनि 4. गृहस्तम्भ,--री 1. देवपत्नी, देवकन्या
अवहेलना । 2. इन्द्र की राजधानी। सम०-अङ्गना, स्त्री
अमर्ष (वि०) [ न० ब०] असहनशील,-र्षः [ न० त०] दिव्य अमरा, देवकन्या-मपाण रत्नानि हरामराङ्गनाः
1. असहिष्णुता, असहनशीलता, धैर्यशून्यता,--अमर्ष.शि. ११५१, अद्रिः देव-पर्वत अर्थात् मुमेरु पहाड़
शन्येन जनस्य जंतूना न जातहान न विद्विषादर:-- ----अधिपः, --इन्द्रः, --- ईशः, -ईश्वरः, -पतिः,
कि० ११३३, ईर्ष्या, ईर्ष्यायुक्त क्रोध,—किनु भवतस्तात--- भर्ता,-राजः देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि,
प्रतापोत्कऽप्यमर्प:---उत्तर० ५, सा. शा० में ३३ कई वार विष्ण और शिव की भी उपाधि --आचार्यः,
व्यभिचारी भावों में से एक..--अमर्ष दे० सा० द०; -गुरुः, ....पूज्य: देवताओं के गुरु, बृहस्पति की
रस० निम्नपरिभाषा बताता है:-परकृतावज्ञानादिउपाधि, आपगा, -- तटिनी, – सरित (स्त्री) नानापराधजन्यो मौनवापारुष्यादिकारणभूतश्चित्तस्वर्गीय नदी, गंगा की उपाधियाँ,--- तटिनीरोधसि
वत्तिविशेषोऽमर्ष: 2. क्रोध, आवेश, कोप,--पुत्रवधामवसन्---- भत० ३।१२३, .. आलयः देवताओं का
ददीपितेन गांडीविना-वेणी० २, सामर्ष ऋद्ध, आवासस्थान, स्वर्ग, ---कंटकम विध्यपर्वतश्रेणी के उस
कुपित, सामर्षम् क्रोधपूर्वक 3. तीव्रता, प्रचण्डता । भाग का नाम जो नर्मदा नदी के उदगम स्थान के
सम० - ज (वि०) क्रोध या असहनशीलता से निकट है ... कोशः, कोषः अमरसिंह द्वारा रचित उत्पन्न, -हासः क्रोधपूर्ण हंसी, खिल्ली उड़ाना । संस्कृत भाषा का एक सुप्रसिद्ध कोश --तरुः, --दारुः ! अमर्षण,-षित, (वि०) न० ब०, न० त० धैर्यहीन, 1. दिव्य वृक्ष, इन्द्र के स्वर्ग का एक वृक्ष, अमरतरु- । अमषिन,-प्रवत् असहनशील, क्षमा न करने वाला--पंच.
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