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( ८१ ) यहाँ पावती की उपमा पूर्णतः सुरक्षित है अर्थात् बात के द्वारा उदाहरण या निदर्शन देना। स्वयं चुप रहते हुए अपनी सखी को संबोधित करने के | अभ्युदित (भू० क० कृ०)[अभि+उद्++त] 1. निकला बहाने अपने प्रियतम से बात करना); अपितेयं तवा- हुआ 2. उन्नत 2. सूर्योदय के अवसर पर सोया हआ। भ्यासे सीता पुण्यव्रता वधूः---उत्तर०७:१७, आपको अभ्युद्गमः-गमनम् ।[अभि+उद्+गम्+घञ, ल्युट्, सौंपी हुई; अभ्यासा (शा) वागत:--सिद्धा. (अलुक अभ्युद्गतिः (स्त्री०) क्तिन् वा] 1. किसी प्रतिष्ठित समास के रूप में)7. (व्या० में) द्वित्व होना 8. द्वित्व व्यक्ति या अतिथि के सम्मानार्थ उठकर चलना 2. हुए मूलशब्द का प्रथम अक्षर, द्वित्व अक्षर 9. (गण० निकलना, होना, उत्पन्न होना। में) गुणा 10. सम्मिलित गान, गीत की टेक । सम० अभ्युद्यत [भु० क. कृ०] [अभि+उ+यम्+क्त] 1. -गत (वि०) उपागत, निकट गया हुआ,-योगः उठा हुआ, ऊपर उठाया हुआ, जैसा कि आयुध, शस्त्र अनवरत गहन चिंतन से उत्पन्न मनोयोग, अभ्यास- 2. तत्पर, तैयार, प्रयत्नशील ('तुमुन्नन्त' सम्प्र० योगेन ततो मामिच्छाप्तं धनंजय-भग० १२।९,-लोपः अधि के अथवा समास में) 3. आगे गया हुआ, द्वित्व किये हुए अक्षर को हटा देना,-व्यवायः द्वित्व निकला हुआ, सामने दिखाई देने वाला, निकट आने अक्षर से उत्पन्न अन्तराल ।
वाला, कुलमभ्युद्यतनूतनेश्वरम्-रघु० ८।१५, 4. अभ्यासादनम् [अभि+आ+सद्+णिच् + ल्युट् ] शत्रु का अयाचित दिया हुआ या लाया हुआ। सामना करना या उस पर हमला करना ।
अभ्युनत (वि.) [अभि+उ+नम्+क्त] 1. उठा हुआ, अभ्याहननम् [अभि+आ+हन् + ल्युट्] 1. प्रहार करना,
ऊँचा किया हुआ,श० ३, 2. ऊपर को उभरा हुआ, चोट पहुँचाना, हत्या करना 2. रोक लगाना, बाधा
बहुत ऊँचा-कु० ११३३ ।। डालना।
अभ्युन्नतिः (स्त्री०) [अभि+उ+नम्+क्तिन्] बड़ी अभ्याहारः [अभि+आ+ह+घञ] 1. निकट लाना, ले
उन्नति या समृद्धि। जाना 2. लूटना।
अभ्युपगमः [अभि+उप+गम्+घा] 1. उपागमन, पहुंच अभ्युक्षणम [अभि+उ+ ल्युट] 1. (जल) छिड़कना, तर
2. स्वीकार करना, मानना, सत्य समझना, (दोष) करना,-परस्पराभ्युक्षणतत्पराणाम् (तासाम्) रघु० मान लेना 3. जिम्मेदारी, प्रतिज्ञा करना, निर्णय १६५७, 2. अभिषेक द्वारा संस्कार ।
मालवि०१, संविदा, करार, प्रतिज्ञा। सम-सिद्धांत: अम्युचित (वि०) [प्रा० स०] प्रचलित, प्रथा के अनुकूल ।
मानी हई प्रस्तावित योजना या सूक्ति। अम्युच्चयः [अभि+उत्+चि- अच] 1. वृद्धि, आगम 2.
अभ्युपपत्तिः (स्त्री०) [ अभि+उप-पद्+क्तिन् ] 1. सम्पन्नता।
सहायतार्थ निकट जाना, दया करना, कृपा करना, अम्युत्कोशनम् [अभि । उत्+क्रुश्-+ ल्युट्] ऊँचे स्वर से | अनुग्रह, कृपा,-अनयाभ्युपपत्त्या-श०४, 2. ढाढ़स, चिल्लाना।
तसल्ली 3. रक्षा, बचाव, ब्राह्मणाभ्युपपत्तौ च शपथे अभ्युत्थानम् [अभि-+उद्+स्थानल्युट] 1. (अपने आसन नास्ति पातकम्-मनु० ८१११२,4. इकरार नामा,
से) सत्कारार्थ उठना, किसी के सम्मान में खड़े होना स्वीकृति, प्रतिज्ञा 5. स्त्री का गर्भवती होना (विशेषत: 2. रवाना होना, प्रस्थान करना, कैच करना 3. उठना भाई की विधवा पत्नी का नियोग द्वारा)। (शा० आलं०), उन्नति, सम्पन्नता, मर्यादा,--(तस्य) | अभ्युपायः [अभि-उप---इ। अच्] 1. प्रतिज्ञा, वादा, नवाभ्युत्थानशिन्यो ननन्दुः सप्रजाः प्रजा:-रधु० ४१३, इकरार 2. साधन, युक्ति, उपचार,—अस्मिन्सुराणां यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम- | विजयाभ्युपाये-कु० ३।१९ । धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्---भग० ४१७ ।
अभ्युपायनम् [अभि+उप-+ अय्+ ल्युट्] सम्मानसूचक अभ्युत्पतनम [अभि+-उत्+पत्+त्युद] किसी पर उछलना, उपहार, प्रलोभन, रिश्वत ।
कूदना; अकस्मात् झपटना, हमला करना--अलक्षिता- | अम्युपेत (भू. क. कृ०) [अभि+उप++क्त] 1. भ्युत्पतनो नृपेण--रघु० २।२७ ।।
निकट आया हुआ, उपागत 2. प्रतिज्ञात, स्वीकृत, अभ्युदयः । अभि-उद्+इ+घञ ] 1. सूर्य चन्द्रादि का | अंगीकृत-मेघ० ३८॥
निकलना, सूर्योदय 2. उन्नति, सम्पन्नता, सौभाग्य, अभ्युपेत्य (अव्य०)अभि+उप+इ--ल्यप् (क्त्वा)] पहुँच ऊंचा उठना, सफलता-स्पृशंति नः स्वामिनमभ्युदया:- कर, स्वीकार करके, प्रतिज्ञा करके । सम०-अशुरत्न. १, भवो हि लोकाभ्युदयाय तादृशाम्-रघु० ३। श्रुषा-हिन्दूधर्मशास्त्र के १८ अधिकारों में से एक, १४, 3. उत्सव, उत्सव का अवसर 4. उपक्रम, स्वामी और सेबक के मध्य की हुई संविदा का भंग। आरम्भ।
अभ्युषः, अभ्यूषः) अभितः उ-ऊष्यते अग्निना दह्यते---उअम्युबाहरणम् [अभि+उद्+आ+ह-ल्युट] विपरीत । अभ्योषः
बाहु क] एक प्रकार की रोटी,
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