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( ८२ ) बाटी।
] अम् (अव्य०) [अम्+क्विप्] 1. जल्दी, शीघ्र 2. अभ्यहः [अभि-जह +घञ] 1. तर्क करना, दलील देना, जरा, थोड़ा। विचार विमर्श करना 2. आगमन (घटाना), अनुमान, | अम् (भ्वा०प०) [अमति, अमितम, अमित ] 1. जाना, अटकल,-पराभ्य हस्थानान्यपि तनुतराणि स्थगयति
की ओर जाना 2. सेवा करना, सम्मान करना 3. -मा० ११४, 3. अध्याहार करना, 4. समझना ।
शब्द करना 4. खाना, (चु०प० या प्रेर०) [ आमअभ् (भ्वा० पर०) [अभ्रति, आनभ्र, अभ्रित] जाना, यति ] 1. टूट पड़ना, आक्रमण करना, रोग से कष्ट
इधर उधर घूमना-बनेष्वान्भ्र निर्भयः----भट्टि० होना, किसी व्याधि से पीडित होना 2. रोगी होना, ४१११, १४।११०।
कष्टग्रस्त या रोगग्रस्त होना। अभ्रम् [अभ्र-+अच् या अप् +9 अपो बित्ति-भ+क] अम (वि०) [अम+धन अवृद्धिः] कच्चा (जैसा कि
1. बादल 2. वायुमंडल, आकाश-परितो विपाण्डु फल),-मः 1. जाना, 2. रुग्णता, रोग 3. सेवक, अनुदधदभ्रशिर:--शि० ९।३, दे० अभ्रंलिह आदि 3. | चर 4. यह, स्वयम् । चिल-चिल, अबरक 4. ( गण० ) शून्य। सम० अमङ्गल-स्य (वि.) [ब० स०, न० त०] 1. अशुभ, ------अवकाशः बचाव के लिए केवलमात्र बादल, बारिश बुरा, अकल्याणकर-रघु०१२।४३,-. अभ्यासरतिम् होना, अवकाशिक,-अवकाशिन ( वि ) बारिश में कु० ५।६५, अमङ्गल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलम् रहकर (तपस्या करन वाला),बारिश से बचाव का कोई -पुष्प० 2. भाग्यहीन, दुर्भाग्य पूर्ण, --ल: एरण्ड उपाय न करने वाला, उत्थः आकाश में उत्पन्न इन्द्र का वृक्ष,---लम् अशोभनीयता, दुर्भाग्य, अकल्याण, का वज,--नागः ऐरावत नाम का हाथी जो धरती प्राय: नाट्य-शास्त्र में प्रयुक्त,-शांतं पापं प्रतिहतको धारण किये हुए हैं--पथः 1. वायुमंडल 2. ममङ्गलम्-तु० भगवान कल्याण करे ! गुब्बारा,-पिशाचः,-पिशाचकः राहु की उपाधि, मेघा- अमण्ड (वि०) [न० ब०] 1. बिना सजावट का, अलंकार सुर,-पुष्पः एक प्रकार की बेंत,--पुष्पम् 1. पानी 2. रहित 2. विना झाग का, या बिना मांड का (उबला असंभव बात, हवाई किला,--मातंगः इन्द्र का हाथी हुआ चावल),-दुः एरण्ड का वक्ष ।
ऐरावत,-माला,-वृन्दम् बादलों की पंक्ति या समूह। | अमत (वि०) [ न० त०] 1. अननुभूत, मन के लिए अभ्रंलिह (वि०) [अभ्र-+-लिह.--खश् मुमागमः] 'बादलों
असंलक्ष्य, अज्ञात 2. नापसन्द, अमान्य,-तः 1. को चूमन वाला स्पर्श करने वाला अर्थात् बहुत ऊँचा;
समय 2. रुग्णता, रोग, 3. मृत्यु। --अभ्रंलिहानाः प्रासादा:-मेघ०६६, प्रासादमभ्रंलिह- | अमति (वि०) [न० ब०] दुर्मना, दुष्ट, दुश्चरित्र, मारुरोह-रघु० १४१२९; --हः वायु, हवा ।
--तिः 1. धूर्त, कपटी 2. चाँद 3. समय,-तिः अभ्रकम् [अभ्र कन्] चिलचिल, अबरक । सम०-भस्मन्
(स्त्री०) [न० त०] अज्ञान, संज्ञाहीनता, ज्ञान का (नपुं०) अबरक का कुश्ता, अबरक की भस्म अभाव, अदूरदर्शिता..-आत्यैतानि षड् जग्ध्वा -----सत्त्वम् इस्पात ।
---मनु० ५।२०, ४।२८२,। सम० पूर्व (वि.) अभ्रडूष (वि०) [अभ्र+कष्--खच् ममागमः] बादलों !
संज्ञाहीन, विचारहीन । को छने वाला, बहत ऊँचा,-आदायाभ्रषं प्राया- अमत्त (वि०) [न० त०] जो नशे में न हो, सही न्मलयं फलशालिनम्-भट्टि०,----ष: 1. वायु, हवा 2.
दिमाग का। पहाड़।
अमत्रम् [अमति भुक्ते अन्नमत्र---अम् + आधारे अनन् ] अभ्रमः (स्त्री०) [अभ्र+मा+उ] इन्द्र के हाथी ऐरावत ____ 1. वर्तन, बासन, पात्र 2. सामर्थ्य, शक्ति ।
की सहचरी, पूर्वदिशा के दिग्गज की हथिनी। सम० अमत्सर (वि०) [न० ब०] जो ईर्ष्याल या डाहयुक्त न --प्रियः,-वल्लभः ऐरावत ।
हो, उदार। अभ्रिः-भ्री (स्त्री०) [अभ्र+इन् ङीष् वा] 1. लकड़ी की अमनस् । (वि.) [न० ब०, कप च] 1. बिना मन या
बनी हुई नोकदार फरही जिससे नाव की सफाई की। अमनस्क ध्यान के 2. बुद्धिहीन (जैसे कि बालक) 3. जाती है, 2. कुदाल, खुरपी।
ध्यान न देने वाला, 4. जिसका अपने मन के ऊपर अभ्रित (वि.) [अभ्र+इतच्] बादलों से आच्छादित, कोई नियंत्रण न हो 5. स्नेहहीन -- (नपुं० ---नः) 1. बादलों से घिरा हुआ-रघु० ३।१२।
जो इच्छा का अंग न हों, प्रत्यक्षज्ञान का अभाव 2. अभ्रिय (वि.) [अभ्र+घ बादलों से संबंध रखने वाला, ध्यानशून्य (पुं०-नाः) परमेश्वर । सम०-- गत (वि०)
आकाश या मुस्ता अथवा बादलों से उत्पन्न,--यः अज्ञात, अविचारित,-ज्ञ,-नीत, नापसंद, रद्द बिजली, -यम गरजने वाले बादलों का समूह । किया गया, धिक्कृत,—योगः ध्यान न देना,--हर अभ्रेषः [ न० त०] अव्यत्यय, योग्यता, उपयुक्तता।
(वि०) जो सुखकर न हो, जो रुचिकर न हो ।
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