Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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१८ अयधवलासहिदे कसायपाहुडे
। पयडिविहत्ती * अणुभागे त्ति अणुभागविहत्ती ३।
३६. जेण गाहाए अणुभागेत्ति अवयवण अणुभागो परूविदो तेण अणुभागविहत्ती णाम तदियो अत्थाहियारो।
* उक्कस्समणुकस्सं ति पदेसविहत्ती ४।।
६.३७. 'उक्स्स मणुक्कस्सं' ति एदेण पदेण पदेसविहत्ती णाम चउत्थो अस्थाहियारो परूविदो।
* झीणमझीणं ति।
३८. झीणमझीणं ति एदेण गाहावयवेण [झीणा-] झीणं णाम पंचमो अत्थाहियारो सूइदो।
* हिदियं वा त्ति ६।
६ ३६. एदेण वि हिदियंतिओ णाम छटो अत्थाहियारो सूइदो । एवं जइवसहाइरियाहिप्पारण एदीए गाहाए छ अत्थाहियारा सूइदा । गुणहरभडारयस्स अहिप्पाएण पुण दो चेव अत्थाहियारा परूविदा त्ति घेत्तव्वं ।
ॐ तत्थ पयडिविहत्तिं वण्णइस्सामो। * गाथामें आये हुए 'अणुभागे' पदसे अनुभागविभक्तिका सूचन होता है।
$ ३६. चूंकि गाथाके ' अणुभागे' इस पद द्वारा अनुभागका कथन किया है, इसलिये अनुभागविभक्ति नामका तीसरा अर्थाधिकार समझना चाहिये ।
* 'उक्कस्समणुकस्सं' इस पदसे प्रदेशविभक्तिका सूचन होता है ।
३७. गाथामें आये हुए 'उक्कस्समणुक्कस्सं' इस पदसे प्रदेशविभक्ति नामके चौथे अर्थाधिकारका कथन किया है। "* झीणाझीण नामका पांचवां अर्थाधिकार है।
३८. गाथाके 'झीणमझीणं' इस पदसे झीणाझीण नामका पांचवां अर्थाधिकार सूचित किया है।
* स्थित्यन्तिक नामका छठा अर्थाधिकार है।
३६. गाथामें आये हुए 'हिदियं वा' इस पदसे स्थित्यन्तिक नामका छठा अर्थाधिकार सूचित किया है। इस प्रकार यतिवृषभ आचार्यके अभिप्रायानुसार इस गाथाके द्वारा छह अर्थाधिकार सूचित किये गये हैं। किन्तु गुणधर भट्टारकके अभिप्रायानुसार इस गाथाके द्वारा दो ही अर्थाधिकार कहे गये हैं ऐसा समझना चाहिये । - विशेषार्थ-यतिवृषभ आचार्य भी कसायपाहुडके मूल अधिकार पन्द्रः ही मानते हैं । इसका विशेष खुलासा हमने प्रथम भागके पृष्ट १८७ पर किया है।
* उन छह अधिकारोंमेंसे पहले प्रकृतिविभक्ति नामके अधिकारका वर्णन करते हैं।
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