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२२ कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७)
इतने में तो उसकी नंगी पीठ पर सहसा जोर से एक डंडा पड़ा। हरामखोर कहीं का ! साहब के आने का समय हो गया है ! कमबख्त ! तेरे पाप से हमारा भी सर्वनाश हो जायगा ! उठता है या नहीं ! -यों लाल-लाल आँखों से घूरते हुए आरब चौकीदार चिल्लाया।
पर अब कौन उठता ! उठने के लिए वह बैठा ही न था ! और उठ कर भी कहाँ जाता !
" बेवकूफ ! तू यों नहीं जाएगा। तो ले" यों कहते हुए आरब चौकीदार ने चार इंच के लोहे के कांटे लगा हुआ डंडा उसके सिर पर दे मारा। चीखता हुआ वह भिखारी वहीं ढल पड़ा। उसकी खोपड़ी फट गई। खून की धारा बह चली। सदा के लिए उसने आँखें मूंद लीं।
आरब चौकीदार उसे गाली देता हुआ चला गया। उसका मृतदेह तीन दिन तक वहीं पड़ा रहा ! कौन उठाता ? गिद्धों और कुत्तों ने उसका मांस नोचकर केवल अस्थिपंजर कर दिया ! १
यह है पूर्वकृत अशुभ कर्मबन्ध के कारण प्राप्त हुए दुःखों की श्रृंखला !
कर्म संयोग ही दुःख का कारण
इसीलिए आचार्य अमितगति ने स्पष्ट कहा - "इस जन्मरूपी वन में शरीर-धारी प्राणी संयोग (कर्म आदि परभावों के साथ बन्ध) के कारण अनेक प्रकार के दुःख भोगता है। इसीलिए अपनी आत्मिक परमशान्तिरूप मुक्ति चाहने वाले व्यक्ति को मन-वचन-काया से कर्मादि पर-पदार्थों के संयोग (बन्ध) का परित्याग कर देना चाहिए । २
"
पूर्वकृत अशुभ कर्मबन्ध ही तो कारण था
पूर्वकृत अशुभ कर्मों के कारण ही अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति केनेडी की भरे बाजार में दिन-दहाड़े गोली मार कर हत्या कर डाली गई।
ये पूर्वबद्ध कर्म ही थे, जिनके कारण अजातशत्रु एवं अहिंसा के परम उपासक महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या हुई । गोडसे को ऐसी कुबुद्धि किसने सुझाई ? कहना होगा - गांधीजी के पूर्वकृत अशुभ कर्मबन्ध ने ही ।
हीरोशिमा और नागासाकी, इन दो नगरों के लाखों निर्दोष मानवों को एटमबम फेंककर जीते-जी भस्म कर देने की कुबुद्धि अमेरिका को किसने स्फुरित की। दूसरों को मारकर जीने का, जी कर पूंजीवाद फैलाने का जंगली विज्ञान अमेरिका को
१. जैनदर्शनमा कर्मवाद से भावांशग्रहण
२. संयोगतो दुःखमनेकभेद, यतोऽश्नुते जन्मवने शरीरी ।
ततस्त्रिधाऽसौ परिवर्जनीयो, यियासुना निर्वृतिमात्मनीनाम् ॥
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- सामायिक पाठ
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