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उत्तर-प्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-४ ३३७ अवगाहना-शरीर की ऊँचाई-नीचाई को अवगाहना कहते हैं। मरण से पूर्व जीव इसका भी बन्ध कर लेता है। (५) प्रदेश-जिन-जिन आत्मप्रदेशों पर जीव को सुख-दुःख का भोग करना होता है, उसका बन्ध भी मरने से पहले हो जाता है। (६) अनुभाग-अनुभाग का अर्थ है-फलप्रदान का सामर्थ्य। जीव के द्वारा बद्ध कर्म का फल उसे तीव्र भोगना है, या तीव्रतर, तीव्रतम, अथवा मन्द, मन्दतर या मन्दतम; यह सब मरने से पहले जीव बाँध लेता है।'
___ आयुकर्म के मुख्य चार भेद : चार उत्तर प्रकृतियाँ यद्यपि कर्म के उदयरूप विकल्प असंख्यात लोकमात्र होने से पर्यायार्थिक नय का अवलम्बन लेने पर तो आयुकर्म की प्रकृतियाँ भी असंख्यात लोकमात्र हैं; किन्त सरलता से समझने के लिए आयुकर्म के चार भेद हैं, अर्थात्-आयुकर्म की उत्तरप्रकृतियाँ चार हैं-(१) नरकायु, (२) तिर्यञ्चायु, (३) मनुष्यायु और (४) देवायु। विश्व में जितने भी संसारी जीव हैं, इन्हें नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव इन चार विभागों में बाँटा गया है। समस्त संसारी जीव आयुष्यकर्म से युक्त होते हैं। इसलिए आयुष्यकर्म के भी चार भेद सम्पन्न हो जाते हैं।२ ।।
. नरकादि आयुकर्म चतुष्टय के लक्षण नरकायुष्यकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव को अमुक काल तक अमुक नरक में ही रहना पड़े, अर्थात्-जिसके उदय से जीव को तीव्र उष्ण, शीत, वेदना एवं यातना वाले सात नरकों में से किसी एक नरक में-नरकगति में जीवन बिताना पड़े, वह जीव वहाँ से निकल भागने की बहुत इच्छा करता है, परन्तु भाग नहीं पाता। पल-पल मौत की अभिलाषा करता है, परन्तु मौत उससे कोसों दूर भागती है। वहाँ की नियत आयु (कालावधि) पूर्ण होने पर ही वहाँ से छूट सकता है, उसे नरकायु कहते हैं। नरक सात हैं। इनमें अवस्थित जीवों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो-दो भेद होने से नारकों के १४ प्रकार होते हैं। अतः जिस कर्म के उदय से नरक में अमुक स्थिति तक जीवन बितांना पड़ता है, उसे नरकायु कर्म कहते हैं।
-कर्मग्रन्थ भा. १, गा. २३
१. ज्ञान का अमृत से, पृ. ३११ . २. (क) कर्म-प्रकृति से, पृ. ४९ - (ख) सुर-नर-तिरि-नरयाऊ । ... (ग) प्रज्ञापना पद २३, उ. २ (घ) नेरइय तिरिक्खाउ मणुस्साउ तहेव या
देवाउ य चउत्य तु आउकम्म चउविह ॥ ३. (क) रे कर्म तेरी गति न्यारी से, पृ. १३४ ... (ख) कर्मप्रकृति से, पृ. ५०
(ग) कर्मग्रन्थ भा. १ विवेचन (मरुधरकेसरीजी) से, पृ. ९७ (घ) ज्ञान का अमृत से, पृ. ३०८
-उत्तराध्ययन ३३/१२
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