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३९० कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७)
पुरुषार्थ से अगाध ज्ञान की प्राप्ति कर लेता है। (७) लाभ की विशिष्टता-लाभ का मद न करने से, उपलब्धियों और सिद्धियों का गर्व (अहंकार) न करने से व्यक्ति को सदैव सर्वत्र उत्कृष्ट लाभ का सर्वोत्तम अवसर मिलता है। वहा जहाँ भी जाता है, जिस किसी भी सत्कार्य को हाथ में लेता है, उसमें सिद्धि या सफलता ही मिलती है। दूसरों के भी बिगड़े हुए कार्य को वह सुधार देता है। और ( ८ ) ऐश्वर्य की विशिष्टता - ऐश्वर्य का अभिमान (मद ) न करने से उसे मनचाहे ऐश्वर्य - भौतिक एवं आध्यात्मिक विभूति की प्राप्ति होती है। अणिमादि सिद्धियाँ अथवा ऐश्वर्य-सामग्री भी उसे अनायास ही प्राप्त हो जाती है । '
गोत्र कर्म का फलभोग आठ प्रकार से
गोत्र का विपाक ( फलभोग) भी आठ प्रकार से होता है - ( १ ) जाति की हीनता - ऐसे व्यक्ति को जाति का मद करने से निकृष्ट जाति मिलती है, उसका मातृवंश कलंकित होता है, जिसके कारण सर्वत्र अपयश और अपमान के कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं । (२) कुल की हीनता - कुल का मद करने से ऐसा जीव नीचकुल -. कलंकित पितृ वंश में जन्म लेता है, जिस के कारण भरी सभा में वह अपना मस्तक ऊँचा नहीं कर पाता। (३) बलहीनता - बलमद करने से उसे तनबल एवं मनोबल की प्राप्ति नहीं होती। कितना ही पौष्टिक आहार करले या औषधि खा ले, उसके तन-मन में बल का संचार नहीं होता। बीमारी उसका पीछा नहीं छोड़ती। (४) रूप की हीनता - रूप का गर्व करने से उस जीव को सुरूपता और सुन्दरता प्राप्त नहीं होती। आकृति sha और भी मिलती है कि लोग देखते ही उसका मजाक करने लगते हैं । २ कितने ही सौन्दर्यप्रसाधनों का उपयोग करलें, उसे सुन्दरता और सुरूपता नहीं प्राप्त होती । (५) तप की हीनता - तप का अभिमान करने से तपस्वियों को अपमानित, निन्दित करने से तपस्या करने की शक्ति नहीं प्राप्त होती । इच्छा होने पर भी वह तप नहीं कर पाता। तपस्या करने की भावना अंगड़ाई लेती है, लेकिन वह साकार नहीं हो पाती । (६) ज्ञान की हीनता - ज्ञान ( श्रुत) का मद करने से जीव को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाती। ज्ञानप्राप्ति के अनेकविध प्रयत्न करने पर भी वह सम्यक् ज्ञान की पवित्र ज्योति से वंचित रहता है। उसका अन्तर्जगत् ज्ञानालोक से आलोकित नहीं हो पाता। (७) लाभ की हीनता - लाभ का, विशिष्ट उपलब्धि का मद ( अहंकार - गर्व) करने से जीव लाभ सम्पदा से रिक्त रहता हैं। जहाँ लाभ की आशा होती है, वहीं निराशा प्राप्त होती है। अनेकविध प्रयत्न, एवं पुरुषार्थ करने पर भी लाभ नहीं मिल पाता । (८) ऐश्वर्य की हीनता - ऐश्वर्य का अभिमान करने के फलस्वरूप उसे किसी प्रकार के ऐश्वर्य - भौतिक और आध्यात्मिक ऐश्वर्य की प्राप्ति नहीं होती । ।
१. ज्ञान का अमृत से पृ. ३५७
२.
वही,
पृ. ३५८-३५९
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