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४०४ कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७) रेल की पटरियों के नीचे कट गए, कुछ ‘पोटाशियम साइनाइड' (विष) खाकर मर गए। बेचारे निर्देशक को स्वप्न में भी यह ख्याल नहीं था कि दर्शक लोग इन दृश्यों को सच मानकर आत्महत्या करने पर उतारू हो जाएँगे। प्रतिदिन हीरों के तीन शो : देखने वाली नेपाल की उस विवहिता युवती की दशा तो इतनी चिन्ताजनक हो चुकी थी कि वह सचमुच ही 'जैकी श्रोफ' नाम हीरो को मन ही मन अपना प्रेमी मान बैठी थी।
निर्देशकों और बहुरूपियों तथा नाट्यकलाकारों में दर्शकों को वश में करने की जितनी शक्ति है, उससे कई गुना अधिक शक्ति मोहनीयकर्मरूपी घातीकर्म में है। मोहनीयकर्म की प्रबल घातकता का उदाहरण __ बहुरूपिये की अपेक्षा भी मोहनीय कर्म में मनुष्य में सहसा क्रोध, अहंकार और मोह उत्पन्न करने की कितनी ताकत है? इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए
एक बहुरूपिया अपनी मंडली सहित एक गांव में पहुंचा। वहाँ उसका विचार 'रामलीला' करने का था। परन्तु उसमें एक ड्रेस कम पड़ गया। बहुरूपिये ने सोचायदि इस गांव में किसी दर्जी की सहायता मिल जाय तो उस ड्रेस की पूर्ति हो सकती है। वह दर्जी की तलाश में गाँव में इधर-उधर घूमा। पूरे गाँव में केवल एक ही दर्जी था। बहुरूपिये ने उसके पास पहुँच कर नम्रतापूर्वक निवेदन किया-"भैया ! हमें आज इस गाँव में रामलीला करनी है। अतः शाम तक अगर इस ड्रेस,को सीकर तैयार कर दो तो बड़ी मेहरबानी होगी।" उस समय विवाह का सीजन चल रहा था। दर्जी सारे दिन कपड़े सीते-सीते थका हुआ था। अभी बहुत-से कपड़े सीने बाकी थे। इसलिए तैश में आकर गाली-गलौज करते हुए अंट-शंट बोल गया। बहुरूपिये का भी अहंकार गर्ज उठा-“देख लेना, बच्चू ! मैं बहुरूपिया हूँ। ऐसा सबक सिखाऊंगा कि बच्चू याद रखेगा।" दर्जी का भी खून खौल उठा। बहुरूपिये को ललकारते हुए उसने कहा-'जा
जा अबे ! तेरे जैसे बहुत आते हैं। तू मेरा क्या कर लेगा? क्या तू मुझे गाँव से बाहर निकाल देगा, जो ऐसी धमकी दे रहा है।' बहुरूपिये ने भी मूंछों पर ताव देकर इस चुनौती का जबाव दिया-'अगर मैं तुझे इस गाँव से बाहर न निकाल दूं तो मैं बहुरूपिया नहीं।' यों कहते हुए वह वहाँ से निकला और सीधा पहुँचा अपने डेरे पर। बहुरूपिये ने अपनी मंडली के लोगों को बुला कर कहा-'साथियो ! रामलीला तो हमने अनेक दफा की है, फिर भी करेंगे, परन्तु आज रात को हमें कुछ नया प्रोग्राम बताना है। वह है रामलीला के बदले दर्जीलीला करना।' बात सभी के गले उतर गई। दर्जीलीला के लिए उक्त बहुरूपिये ने सभी को अपने-अपने रोल समझा दिये।
आवश्यक तैयारी कर ली गई। दर्जी से सम्बन्धित जैसी-जैसी पोशाकों से सुसज्जित होना था, सभी सुसज्जित होकर बैठे।
१. रे कर्म तेरी गति न्यारी (आ. विजयगुणरत्नसूरीजी) से भावांशग्रहण, पृ. ३४ ।
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