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रसबन्ध बनाम अनुभागबन्ध : स्वरूप और परिणाम ४५१ इसी प्रकार शुभभावों से अशुभ प्रकृतियों में मन्द अनुभागबन्ध होता है और संक्लेशभावों से शुभ प्रकृतियों मे मन्द अनुभागबन्ध होता है । '
रसबन्ध : रसाणुओं का, अर्थात् - फलदानशक्ति अंशों का बन्ध
रसबन्ध का एक अर्थ है- विभिन्न रसाणुओं का बन्ध । इसे यों समझा जा सकता है । जिस प्रकार पुद्गलद्रव्य के सबसे छोटे अंश को परमाणु कहते हैं, उसी प्रकार शक्ति के सबसे छोटे अंश को रसाणु कहते हैं। कर्मविज्ञान के सन्दर्भ में रस का अर्थखट्टे, मीठे आदि पांच प्रकार के रस से नहीं है; किन्तु अनुभागबन्ध या रसबन्ध का वर्णन करते हुए शुभ - अशुभ कर्मों के फल में जो मधुर, कटु अथवा तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम, अत्यन्त तीव्र, मधुर तथा कटुफल का जो व्यवहार किया जाता है, उस रस से है। यह रस वैसे तो प्रत्येक पुद्गल में पाया जाता है। किन्तु कर्मपुद्गलों का फलरूप रस दूसरा ही है। जैसे- पुद्गलद्रव्य के स्कन्धों के टुकड़े किये जा सकते हैं, वैसे उसके अंदर रहने वाले गुणों या शक्ति-विशेष के टुकड़े नहीं किये जा सकते। फिर भी वर्तमान में विकसित भौतिक विज्ञान के प्रयोग द्वारा विभिन्न रसायनों, औषधियों आदि में तथा अन्यान्य पदार्थों में गुणों तथा शक्ति की न्यूनाधिकता को सहज ही जान लिया जाता है। विभिन्न यंत्रों और मशीनों में ५, १०, २० आदि होर्स पावर ( अश्वशक्तितुल्य) आदि के रूप में शक्ति का माप ले लिया जाता है। उदाहरणार्थ- यदि हलवाई के सामने गाय, भैंस और बकरी का दूध रखा जाए तो वह उसकी परीक्षा करके तुरंत कह देता है कि इस दूध में चिकनाई अधिक है, इसमें कम है। चिकनाई के टुकड़े नहीं किये जा सकते, क्योंकि वह एक गुण है; मगर विभिन्न मापकयंत्रों द्वारा आसानी से व्यक्ति विभिन्न वस्तुओं के गुणों या शक्तियों की तरतमता को जान सकता है। वह तरतमता ही यह बतलाती है कि शक्ति या गुणवत्ता के भी विभिन्न अंश होते हैं। वर्तमान युग के वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला है कि किस खाद्य या पेय वस्तु में कितनी अधिक जीवनदायिनी शक्ति (विटामिन ) है, और वह कौन-सी है और किस वस्तु में कौन-सी और कितनी कम है ? विज्ञानविदों की इस प्रकार की खोजों का परिणाम आये दिन समाचार-पत्रों में प्रकाशित होता रहता है। उनके द्वारा प्रकाशित चार्ट (तालिका) में लिखा रहता है - बादाम में प्रतिशत इतनी जीवनी शक्ति है, दूध में इतनी है, अमुक दाल में, अमुक पत्तीवाली भाजी में इतनी है, इत्यादि । विभिन्न खाद्य पदार्थों में यह जो अमुक-अमुक अंश में इतनी इतनी मात्रा में जीवनीशक्ति विद्यमान है; इससे यह सिद्ध होता है कि शक्ति या गुणवत्ता के भी अंश हो सकते हैं। इन्हें ही कम के सन्दर्भ में हम रस के अंश कह सकते हैं, इस अपेक्षा से रस शब्द से यहाँ फलदायिनी शक्ति ही इष्ट और विवक्षित है। ये रस के अंश ही 'रसाणु' कहे जाते हैं। सबसे जघन्य रस वाले पुद्गल द्रव्य में भी जीवराशि से अनन्तगुणे रसाणु पाये जाते
१. तिव्वो असुह-सुहाणं संकेस - विसोहिउ विवज्जयउ, मंदरसो
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- कर्मग्रन्थ भा. ५ गा. ६३
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