Book Title: Karm Vignan Part 04
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 521
________________ २४ = स्थितिबन्ध : स्वरूप, कार्य और परिणाम == . न्यायप्रिय शासक : एक को दण्ड, दूसरे को पुरस्कार एक न्यायप्रिय शासक है। उसके सामने दो प्रकार के व्यक्ति उपस्थित किये गए हैं-एक अपराधी है, दूसरा व्यक्ति लोकोपकारी सेवक है। एक दण्डयोग्य है, दूसरा पुरस्कारयोग्य है। एक ने न्याय-नीतिविरुद्ध कार्य-अशुभ कार्य किया है, जबकि दूसरे व्यक्ति ने नदी में भयंकर बाढ़ आने के कारण दूर से तेज रफ्तार से आती हुई पेसिंजर ट्रेन को रोक कर हजारों रेल-यात्रियों के जान-माल की रक्षा की हैशुभसेवाकार्य किया है। शासक एकं न्यायाधीश की तरह अपराधी को न्याय देने के विषय में यह सोचता है कि इसने किस प्रकार का अपराध किया है ? हत्या की है, चोरी की है, अथवा बलात्कार किया है ? इत्यादि, फिर वह सोचता है कि अगर चोरी का अपराध किया है तो पहली ही बार किया है या बार-बार किया है ? अथवा बड़ी चोरी की है या मामूली चोरी की है ? अथवा कितना माल चुराया है ? लाखों का या हजारों का माल चुराया है ? फिर वह यह सोचता है कि इस व्यक्ति ने किस इरादे से, किस अभिप्राय से चोरी की है ? चोरी के पीछे इसकी क्रूरता, दुष्ट-भावना या तीव्रता कम या अधिक थी। अथवा इसने अभाव पीड़ित होने से या परिवार की क्षुधा के निवारण या अन्य आवश्यकता की पूर्ति के लिए लाचारी से चोरी की है या जानबूझ कर तीव्र लोभ से प्रेरित होकर चोरी की है ? इसके पश्चात् उक्त चोर के परिणामों को देखकर तदनुसार शारीरिक, मानसिक, आर्थिक सजा देता है, तथा उस सजा की काल सीमा भी निश्चित करता है। इसी प्रकार पूर्वोक्त लोकसेवक को उसकी सेवा का प्रकार तथा वह सेवा बार-बार या एक बार ही की है? इसका वह शासक विचार करता है, किस भाव से उसने सेवा की है ? इसका विचार करके उसको पुरस्कार देता है, अपने राज्य में उसे यावज्जीवन पेन्शन, पुरस्कार राशि के रूप में, तथा निःशुल्क आवास-प्रवासादि के रूप में उसे सम्मानित करता है। . (४७३) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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