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स्थितिबन्ध : स्वरूप, कार्य और परिणाम ४८५
आयुकर्म के त्रिभाग वाले अबाधाकाल का हिसाब इसके विपरीत जो स्थिति कर्मरूपताऽवस्थानलक्षणा है, उसमें आयुकर्म के अबाधाकाल का त्रिभाग वाला नियम लागू होता है। पहले नरकायु और देवायु की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागर की बतला चुके हैं। तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य की है। अतः इन चारों की उत्कृष्ट स्थिति के अनुसार अबाधाकाल का प्ररूपण इस प्रकार किया गया है
एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीव आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति एक पूर्वकोटि-प्रमाण बांधते हैं। असंज्ञी पर्याप्तक जीव चारों ही आयुकर्मों की उत्कृष्ट स्थिति पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण बांधते हैं। निरुपक्रम आयु वाले अर्थात्-जिनकी आयु का अपवर्तन - घात नहीं होता, ऐसे देव, नारक और भोगभूमिज मनुष्यों तथा तिर्यञ्चों के आयुकर्म का अबाधाकाल छह मास का होता है। शेष मनुष्यों तथा तिर्यञ्चों के आयुकर्म का अबाधाकाल अपनी-अपनी आयु के तीसरे भाग (१/३ भाग) प्रमाण होता है।
गति के अनुसार आयु का बन्ध त्रिभाग प्रमाण
गति के अनुसार- मनुष्यगति और तिर्यञ्चगति में जब भुज्यमान आयु के दो भाग बीत जाते हैं, तब परभव की आयु के बन्ध का काल उपस्थित होता है। जैसे - यदि किसी मनुष्य की ९९ वर्ष की आयु हैं तो उसमें से ६६ वर्ष बीत जाने पर वह मनुष्य परभव की आयु बांध सकता है। इससे पहले उसके आयुकर्म का बन्ध नहीं हो सकता। इस दृष्टि से मनुष्यों और तिर्यञ्चों के आयुकर्म का अबाधाकाल एक पूर्वकोटि का तीसरा भाग बतलाया है, क्योंकि कर्मभूमिज मनुष्य और तिर्यञ्च की आयु एक पूर्वकोटि की होती है। अतः उसके त्रिभाग में परभव की आयु बंधती है । भोगभूमिज मनुष्य और तिर्यंच तथा देव और नारक अपनी-अपनी आयु के ६ मास शेष रहने पर - परभव की आयु बांधते हैं, इसी से निरुपक्रम आयु वालों के बध्यमान आयुष्य का अबाधाकाल छह मास बतलाया है।
त्रिभाग से कुछ अधिक शेष रहने पर परभव का आयुष्य बन्ध नहीं
एक शंका इस सम्बन्ध में उपस्थित होती है कि आयु के दो भाग बीत जाने पर जो आयु. का बन्ध कहा है, वह असंभव होने से चारों गतियों में घटित नहीं होता। क्योंकि भोगभूमिया मनुष्य और तिर्यञ्च कुछ अधिक पल्य का असंख्यातवाँ भाग शेष रहने पर परभव की आयु नहीं बाँधते हैं। अपितु पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग शेष रहने पर ही परभव की आयु बांधते हैं। तथा देव, नारक और असंख्यात वर्ष की आयु वाले निरुपक्रमी मनुष्य एवं तिर्यञ्च अपनी आयु के छह मास से अधिक शेष रहने पर परभव की आयु नहीं बांधते, किन्तु छह मास की आयु बाकी रहने पर ही परभव की आयु बांधते हैं। मगर उनकी आयु का त्रिभाग बहुत होता है। तिर्यञ्चों और मनुष्यों की आयु का त्रिभाग एक पल्य तथा देवों और नारकों की आयु का त्रिभाग ग्यारह सागर होता है।
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