Book Title: Karm Vignan Part 04
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 551
________________ स्थितिबन्ध : स्वरूप, कार्य और परिणाम ५०३ “इस दृष्टि से कर्मग्रन्थ में बताया गया है कि देवायु, मनुष्यायु और तिर्यंचायु के सिवाय शेष सभी प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति अशुभ और जघन्य स्थिति शुभ होती है। उत्कृष्ट स्थिति अशुभ इसलिये मानी जाती है कि उसका बन्ध अतिसंक्लिष्ट परिणामों से होता है, जबकि जघन्य स्थिति का बन्ध विशुद्ध भावों से होता है। कषायजन्य होते हुए भी अनुभागबन्ध और स्थितिबन्ध में महान् अन्तर यहाँ शंका होती है-स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध दोनों ही कषाय से ही होते हैं, तब जैसे उत्कृष्ट स्थिति को अशुभ माना जाता है, उसी तरह उत्कृष्ट अनुभाग को भी अशुभ मानना चाहिए; क्योंकि दोनों का कारण कषाय है। किन्तु शास्त्रों में शुभ प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्ध को शुभ और अशुभ प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध को अशुभ कहा है, ऐसा क्यों? इसका समाधान यह है कि यद्यपि अनुभागबन्ध का कारण भी कषाय ही है और स्थितिबन्ध का कारण भी कषाय ही है। तथापि दोनों में बड़ा अन्तर है। कषाय की तीव्रता होने पर अशुभ प्रकृतियों में अनुभागबन्ध अधिक होता है, जबकि शुभ प्रकृतियों में कम । तथैव कषाय की मन्दता होने पर शुभ प्रकृतियों में अनुभागबन्ध अधिक होता है, और अशभ प्रकतियों में कम होता है। इस प्रकार प्रत्येक प्रकृति के अनुभागबन्ध की हीनाधिकता कषाय की हीनाधिकता पर निर्भर नहीं है। किन्तु शुभ प्रकृतियों के अनुभागबन्ध की हीनता और अधिकता कषायों की तीव्रता और मन्दता पर अवलम्बित है, जबकि अशुभ प्रकृतियों के अनुभागबन्ध की हीनता और अधिकता कषाय की मन्दता और तीव्रता पर अवलम्बित है। तात्पर्य यह है कि अनुभाग-बन्ध की दृष्टि से कषाय की तीव्रता और मन्दता का प्रभाव शुभ और अशुभ प्रकृतियों पर बिलकुल विपरीत पड़ता है। किन्तु स्थितिबन्ध में यह बात नहीं है। क्योंकि कषाय की तीव्रता के समय शुभ या अशुभ जो भी प्रकृतियाँ बंधती हैं, उन सबमें ही स्थितिबन्ध अधिक होता है। इसी तरह कषाय की मन्दता के समय जो भी प्रकृतियाँ बंधती हैं, उन सब में ही स्थितिबन्ध कम होता है। अतः स्थितिबन्ध की अपेक्षा से कषाय की तीव्रता-मन्दता का प्रभाव सभी प्रकृतियों पर एक-सा होता है। जैसे-अनुभाग में शुभ और अशुभ प्रकृतियों पर कषाय का पृथक्-पृथक् प्रभाव पड़ता है। वैसे स्थितिबन्ध में नहीं पड़ता। दूसरी दृष्टि से इस तथ्य को यों कह सकते हैं-जब-जब शुभ प्रकृतियों में उत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, तब-तब उनमें जघन्य स्थितिबन्ध होता है और जब-जब उनमें जघन्य अनुभागबन्ध होता है, तब-तब उनमें उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है। क्योंकि शुभ प्रकृतियों में उत्कृष्ट अनुभागबन्ध का कारण कषाय की मन्दता है, जो कि जघन्य स्थितिबन्ध का कारण है। तथा उनके जघन्य अनुभाग का कारण कषाय की तीव्रता १. (क) कर्मग्रन्थ भा. ५, गा. ५२ (पं. कैलाशचन्द्रजी) विवेचन सहित, पृ. १४७ (ख) स्थितिबन्ध के अल्पबहुत्व तथा शुभाशुभता के विषय में कर्मग्रन्थ भा. ५ में देखें । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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